पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह त्योहार देश भर में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। हालांकि भारत के कई हिस्सों में इस मकर संक्रांति के नाम से ही जाना जाता है। ऐसे में अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसे मकर संक्रांति क्यों कहते हैं तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी।
अलग-अलग कहानियां
मकर संक्रांति के दिन यानी कि आज के दिन सूर्य देवता आज मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिसकी वजह से इसे मंकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति के इस त्योहार को पूरे देश में मनाने का रिवाज है। हालांकि इसके नाम बड़े अलग-अलग हैं। मकर संक्रांति को पंजाब में माघी, असम में बीहू, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात में उत्तरायण के नाम से पुकारा जाता है। हिन्दू धर्म के इस त्योहार के पीछे कई अलग-अलग कहानियां है।
मकर राशि में प्रवेश
जिस तरह एक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दो भाग होते हैं। वैसे ही साल भी दो भागों उत्तरायण और दक्षिणायण में बंटा होता है। जिससे जब पौष के महीने में सूर्य देवता धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है। मान्यता है कि यही से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू होती है। सबसे खास बात तो यह है सूर्य 12, 13, 14 या 15 जनवरी में से किसी भी दिन मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
पिता पुत्र का मिलन
वहीं यह भी मान्यता है इस दिन सूर्य देवता और उनके पत्र का मिलन होता है। यानी कि आज के दिन सूर्य देवता अपने पुत्र व मकर राशि के स्वामी शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। जिसकी वजह से इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं लोगों का यह भी मानना है कि आज ही के एक दिन गंगा मइया भी धरती पर अवतरित हुई थीं। जिसकी वजह से यह त्योहार मनाया जाता है।
शरीर का पतित्याग
आज के दिन गंगा स्नान करना जरूरी होता है। इसके अलावा कहा जाता है कि भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने अपने शरीर का पतित्याग किया था क्योंकि उत्तरायण में देह छोड़ने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं। वहीं दक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्मा को काफी भटकना पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताया है। जिसमें जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और धरती पर प्रकाश रहता है तब शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति ब्रह्मलोक जता है।…Next
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