दान-पुण्य करते वक्त ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है, प्राचीन काल में शिक्षा पूरी होने के बाद विद्यार्थी अपने गुरुओं को दक्षिणा दिया करते थे। यह कुछ भी हुआ करती थी जैसे एकलव्य ने अपने गुरु ‘द्रोण’ को दक्षिणा में अपना अंगूठा काटकर दे दिया था। ये दक्षिणा देने की प्रथा कहां से शुरु हई? इसके पीछे क्या कारण है? इन सलावों के जवाब आपको इस कथा में मिल जाएंगे।
श्री कृष्ण और लक्ष्मी जी से जुड़ी हैं कथा
यह प्राचीन कथा श्री कृष्ण और लक्ष्मी जी से जुड़ी हुई है। गोलोक में भगवान कृष्ण को सुशीला नामक गोपी बहुत पसंद थी, वह उसकी विद्या, रुप और गुणों से प्रभावित थे। सुशीला राधाजी की ही सखी थीं। श्रीकृष्ण द्वारा सुशीला को पसंद करने की बात राधा को पसंद नही थी। इसीलिए उन्होंने सुशीला को गोलोक से बाहर निकालवा दिया। इस बात से सुशीला को बहुत दुख हुआ और वो कठिन तप करने लगी। इस तप से वो विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गईं।
देवताओं को यज्ञ का फल मिलना रुक गया
इसके बाद से विष्णु जी द्वारा देवताओं को यज्ञ का फल मिलना रुक गया। इस विषय में सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी जी ने भगवान विष्णु जी का ध्यान किया। विष्णु जी ने सभी देवताओं की बात मानकर इसका एक हल निकाला। उन्होंने अपनी प्रिय महालक्ष्मी के अंश से एक ‘मर्त्यलक्ष्मी’ को बनाया जिसे नाम दिया दक्षिणा और इसे ब्रह्माजी को सौंप दिया।
ब्रह्माजी ने दक्षिणा का विवाह यज्ञपुरुष के साथ किया
ब्रह्माजी ने दक्षिणा का विवाह यज्ञपुरुष के साथ कर दिया। बाद में इन दोनों का पुत्र हुआ जिसे नाम दिया ‘फल’. इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा और पुत्र फल से सम्पन्न होने पर सभी को कर्मों का फल देने लगे। इससे देवताओं को भी यज्ञ का फल मिलने लगा। इसी वजह से शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ पूरा नहीं होता और कोई फल नहीं मिलता। इसीलिए ऐसा माना गया कि यज्ञ करने वाले को तभी फल मिलेगा जब वो दक्षिणा देगा। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला-इन नामों से भी जाना जाता है।…Next
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