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महाभारत में मिलती है ‘छठ पर्व’ से जुड़ी ये कहानी, द्रौपदी ने इस कामना से किया था व्रत

दिवाली बीतने के साथ ही पूरब के लोगों को छठ पर्व का इंतजार है. बिहार और उत्तरप्रदेश के कई हिस्सों के अलावा, अब छठ की झलक महानगरों में भी देखने को मिलती हैं. बीते सालों में दिल्ली और दिल्ली से सटे नोएडा में छठ पर्व के लिए घाट बनाए गए हैं. छठ के दिनों में इन घाटों पर अच्छी-खासी भीड़ देखने को मिलती है. महाभारत में इस पर्व से जुड़ी हुई कई कहानियां मिलती है. आइए, जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी हुई पौराणिक कहानियां.


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द्रौपदी ने की सूर्यदेव की आराधना

महाभारत काल में कुंती-पुत्र कर्ण भगवान सूर्य के उपासक थे. वो घंटों कमर तक जल में खड़े होकर उनकी उपासना करते थे. उपासना के समय वो सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते थे. उस समय से ही हमारे समाज में यह परंपरा चली आ रही है. वहीं माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव और द्रौपदी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी में सूर्य भगवान को विशेष रूप जल चढ़ाते थे. द्रौपदी पुत्रों की कामना करते हुए भगवान सूर्य की आराधना करती थी. इसके लिए उन्होंने व्रत भी किया था. महाभारत की इस घटना को भी छठपर्व से जोड़कर देखा जाता है.


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राजा प्रियंवद की मृत संतान

वहीं दूसरी पौराणिक कहानी के अनुसार राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी. काफी प्रयासों के बाद भी जब उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो वो महर्षि कश्यप के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे. महर्षि कश्यप ने एक यज्ञ किया. यज्ञ की समाप्ति के बाद राजा की पत्नी मालिनी को प्रसाद स्वरूप खीर खाने के लिए दिया. इससे रानी गर्भवती हुई. परंतु उनके गर्भ से जन्म लेने वाला बच्चा मृत पैदा हुआ.

राजा इससे आहत हुए और अपने मृत पुत्र का शरीर लेकर श्मशान चल पड़े. वहाँ वो पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे. उसी समय वहां देवसेना नामक देवी प्रकट हुई. उसने राजा से उनका व्रत करने को कहा. राजा ने देवी की इच्छानुसार ही कार्तिक के महीने में व्रत किया. फलस्वरूप राजा को संतान की प्राप्ति हुई. फिर उस राजा ने नियम-निष्ठा से कार्तिक के महीने में यह व्रत करना आरंभ किया जो बाद में हमारी परंपरा में शामिल हो गई. ..Next


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