Menu
blogid : 19157 postid : 1319068

देवी गंगा ने इस कारण 7 पुत्रों को जीवित ही बहा दिया नदी में, भीष्म को मिला था श्रापित जीवन

महाभारत में ऐसी कई कहानियां हैं जो काफी रहस्यमय लगती है. हर योद्धा का जीवन पुर्नजन्म या किसी श्राप से प्रभावित था. ऐसी ही एक कहानी है महाभारत के प्रारंभ की, जिसमें देवी गंगा और शांतनु के प्रेम प्रसंग का उल्लेख किया गया है.


ganga 8

इस कहानी के अनुसार भीष्म पितामहा का संपूर्ण जीवन श्रापित था. देवी गंगा ने अपने 7 पुत्रों को जन्म लेते ही जीवित ही नदी में बहा दिया था. इसके पीछे एक ऐसी कहानी है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं.


श्रापित थे देवी गंगा के आठ पुत्र

महाभारत के आदि पर्व के अनुसार, एक बार पृथु पुत्र जिन्हें वसु कहा जाता था, वो अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर घूम रहे थे. वहां वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था. वहां नंदिनी नाम की गाय थी. द्यो नामक वसु ने अन्य वसुओं के साथ मिलकर अपनी पत्नी के लिए उस गाय का हरण कर लिया. जब महर्षि वशिष्ठ को पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर सभी वसुओं को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया.


gangga


वसुओं द्वारा क्षमा मांगने पर ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा. इस श्राप की बात जब वसुओं ने गंगा को बताई तो गंगा ने कहा कि ‘मैं तुम सभी को अपने गर्भ में धारण करूंगी और तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी’. गंगा ने ऐसा ही किया. वशिष्ठ ऋषि के श्राप के कारण भीष्म को पृथ्वी पर रहकर दुख भोगने पड़े.


जब आठवें पुत्र को नदी में बहाने से रोक लिया शांतनु ने

जब गंगा ने शांतनु से प्रेम विवाह किया था तो गंगा ने राजा के सामने एक शर्त रखी थी कि अगर जीवन में राजा शांतनु ने कभी भी गंगा को किसी काम को करने से रोका या टोका तो, वो तुंरत राजा शांतनु को छोड़कर चली जाएगी. 7 पुत्रों को बहा देने के बाद शांतनु ने आठवें पुत्र को बहाने से गंगा को रोक लिया. जिसके बाद गंगा ने शर्त का पालन करने पर शांतनु को छोड़ दिया. देवी गंगा आठवें पुत्र को लेकर अदृश्य हो गई.


ganga


जब लौट आई गंगा और आठवें पुत्र का नाम रखा गया भीष्म

एक दिन गंगा नदी के तट पर घूम रहे थे. वहां उन्होंने देखा कि गंगा में बहुत थोड़ा जल रह गया है और वह भी प्रवाहित नहीं हो रहा है. इस रहस्य का पता लगाने जब शांतनु आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर व दिव्य युवक अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से गंगा की धारा रोक दी है. यह दृश्य देखकर शांतनु को बड़ा आश्चर्य हुआ। तभी वहां शांतनु की पत्नी गंगा प्रकट हुई और उन्होंने बताया कि यह युवक आपका आठवां पुत्र है. उस युवक की बुद्धि और कौशल देखकर उसका नाम देवव्रत से ‘भीष्म’ रखा गया. अपने पुर्नजन्म के पाप के कारण भीष्म को जीवन भर दुख सहना पड़ा अर्थात उनका पूरा ही जीवन श्रापित था. …Next


Read More :

केवल इस योद्धा के विनाश के लिए महाभारत युद्ध में श्री कृष्ण ने उठाया सुदर्शन चक्र

श्री कृष्ण के संग नहीं देखी होगी रुक्मिणी की मूरत, पर यहाँ विराजमान है उनके इस अवतार के साथ

मरने से पहले कर्ण ने मांगे थे श्रीकृष्ण से ये तीन वरदान, जिसे सुनकर दुविधा में पड़ गए थे श्रीकृष्ण

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh