इतिहास में ऐसा बहुत कम हुआ है जब किसी युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया हो, महाभारत का युद्ध एक ऐसा ही युद्ध था, जिसमें धर्म और विचारों के दमन के विरूद्ध पांडवों को अपने ही कौरव भाईयों को लहूलुहान करना पड़ा था. इस युद्ध में भाईयों के अलावा कई ऐसे पात्र थे, जो धर्म और सम्बध को लेकर दुविधा में घिर गए थे. भीष्म पितामहा ने धर्म के बजाय सम्बध को चुना, इसलिए उन्होंने कौरवों का साथ दिया. इस युद्ध में अधिकतर पात्रों ने कौरवों का साथ दिया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वयं कौरव पुत्रों में से एक ने धर्म और सत्य का मार्ग चुनते हुए पांडव पुत्रों का साथ दिया था. महाभारत में एक ऐसा ही योद्धा था युयुत्सु. जिसके बाहुबल के कारण पांडवों का पक्ष मजबूत हो गया.
कौन था युयुत्सु
महाभारत में कौरवों के जन्म की कथा हर कोई जानता है. कौरवों का जन्म प्राकृतिक विधि से नहीं हुआ था बल्कि 100 कौरव गांधारी के गर्भ से उत्पन्न हुए मांस के लोथड़े से पैदा हुए थे. 100 पांडवों के अलावा उनकी एक बहन भी थी. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि धृतराष्ट्र की 101 संतान नहीं बल्कि 102 संतान थी. ये 102वीं संतान थे युयुत्सु. जिनका जन्म उसी दिन हुआ था जिस दिन कौरवों का जन्म हुआ था.
दासी से था धृतराष्ट्र का सम्बध
वास्तव में युयुत्सु एक दासीपुत्र थे. कहा जाता है धृतराष्ट्र के महल की दासी के साथ सम्बध थे. जब काफी सालों तक गांधारी को पुत्र प्राप्ति नहीं हुई तो धृतराष्ट्र को भय लगने लगा कि कहीं वो संतानविहीन ना रह जाए और उनका सारा राज-काज पांडवों को ना चले जाए. इस कारण केवल संतान उत्पत्ति के लिए उन्होंने महल की एक दासी से सम्बध बना लिए.
युद्ध में बचे थे केवल युयुत्सु
बचपन से ही युयुत्सु को अपने भाईयों द्वारा किए जा रहे कार्य पसंद नहीं आते थे. इस कारण से वो हमेशा उनसे अलग ही रहे. समय बीतने के साथ जब कुरुक्षेत्र युद्ध की बारी आई तो युयुत्सु ने अपने भाई कौरवों की बजाय धर्म और सत्य के लिए न्याययुद्ध करने वाले पांडवों को चुना. कहा जाता है कि युयुत्सु इतने बलशाली थे कि एक बार में 60,000 सैनिकों को पराजित कर दिया था. युद्ध में युयुत्सु के अतिरिक्त कोई कौरव नहीं बचे थे.
राजा परीक्षित के बने थे सलाहकार
सत्य और न्याय के लिए सदैव तत्पर रहने वाले युयुत्सु ने अभिमन्यु पुत्र राजा परीक्षित के सलाहकार का पद भी संभाला था. इनकी सलाह के अनुसार ही राजा परीक्षित राज-काज संभाला करते थे…Next
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