महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध भी कहा जाता है. ये युद्ध सिर्फ शासन, राजपाट या द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए नहीं बल्कि विचारधाराओंं का भी था. आज महाभारत के युद्ध को हजारों साल बीत चुके हैंं, लेकिन कलियुग में भी इससे काफी कुछ सीखा जा सकता है. महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका को बेहद अहम माना जाता है.
श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी थे, लेकिन जरूरत पड़ने पर उन्होंने भीष्म पितामह के लिए शस्त्र उठा लिया. इसके अलावा उन्होंने पांडवो की जीत में आने वाली सभी कठिनाईयों को भी मार्ग से हटा दिया.
ऐसी ही एक कहानी है, घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक की. जिसका सिर कृष्ण ने दान में मांग लिया था और उनके इस बलिदान के बदले उन्हें खुद में समाहित कर लिया. आइए जानते हैं महाभारत की एक और दिलचस्प कहानी.
बर्बरीक भीम का पोता और घटोत्कच का पुत्र था. बर्बरीक को कोई नहीं हरा सकता था, क्योंकि उसके पास कामाख्या देवी से प्राप्त हुए तीन तीर थे, जिनसे वह कोई भी युद्ध जीत सकता था. पर उसने शपथ ली थी की वह सिर्फ कमजोर पक्ष के लिये ही लड़ेगा.
अब चुकी बर्बरीक जब वहां पहुंचा तब कौरव कमजोर थे, इसलिए उसका उनकी तरफ से लड़ना तय था. जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली तो उन्होंने उसका शीश ही दान में मांग लिया तथा उसे वरदान दिया कि आप कलियुग में मेरे नाम से जाना जाएगा. इसी बर्बरीक का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटूश्यामजी में है, उनकी बाबा श्याम के नाम से पूजा होती है…Next
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