जब भी प्यार का नाम लिया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण और राधा का नाम सबसे पहले लिया जाता है. बल्कि प्रेम की इस पराकाष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राधा का नाम श्रीकृष्ण से पहले लिया जाता है. इसके अलावा श्रीकृष्ण की सोलह हजार आठ पत्नियां होने के बाद भी राधा रानी का नाम श्रीकृष्ण के साथ पहले जपा जाता है. लेकिन फिर भी राधा और कृष्ण का कभी मिलन नहीं हो पाया था. इसका कारण था एक श्राप. आइए, आपको बताते हैं ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित एक कहानी.
जब क्रोधित हो गई थी राधा
इस पुराण के अनुसार देवी राधा भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थी. एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थीं, तब श्री कृष्ण अपनी पत्नी विराजा के साथ विहार कर रहे थे. राधा ने जब अपने प्राण प्रिय पति को किसी और के साथ विचरण करते हुए देखा तो वो कृष्ण को भला बुरा कहने लगी. राधा को क्रोधित देखकर विरजा नदी बनकर वहां से चली गईंं.
कृष्ण के मित्र श्रीदामा ने दे दिया श्राप
कृष्ण को बुरा कहने पर श्री कृष्ण के सेवक और मित्र श्रीदामा को क्रोध आ गया और उन्होंने देवी राधा का अपमान कर दिया. इससे देवी राधा और क्रोधित हो गई इन्होंने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया. श्रीदामा के ऐसे कटुवचन सुनकर देवी राधा को पृथ्वी पर मनुष्य रुप में जन्म लेने का श्राप दे दिया. इस श्राप के कारण श्रीदामा शंखचूड़ नामक असुर बना. देवी राधा को कीर्ति और वृषभानु की पुत्री के रुप में जन्म लेना पड़ा, लेकिन इनका जन्म देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं हुआ था.
इस तरह वियोग हुआ श्रीकृष्ण-राधा का
पृथ्वी लोक पर जन्म लेने के कुछ वर्षों बाद पूर्वजन्म का श्राप प्रभाव में आने लगा. कृष्ण की रासलीलाएं समाप्त हुईंं और उन्हें कंस से युद्ध करने के लिए जाना पड़ा. जिससे राधा का साथ उनसे हमेशा के लिए छूट गया और उनका विवाह रायाण नामक एक वैश्य से हो गया. कहा जाता है कि राधा रायाण के पास अपनी छाया स्थापित करके वापस वैकुंठ लौट गई थी. राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण के वियोग का कारण श्रीदामा का श्राप ही था…Next
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