श्रीकृष्ण की पूजा होती है राधा के साथ और प्रभु राम की देवी सीता और लक्ष्मण के साथ. इनकी पूजा साथ में होने का कारण हमें पता है लेकिन आपने देखा होगा कि देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा एक साथ की जाती है. विशेषतौर पर दीवाली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा गणेश की प्रतिमा के साथ की जाती है. भगवान गणेश के बिना देवी लक्ष्मी की पूजा अधूरी मानी जाती है. वास्तव में इससे जुड़ी हुई कई पौराणिक कहानियां मिलती है.
साधु से क्रोधित हो गए थे भगवान गणेश
एक बार एक वैरागी साधु को राजसुख भोगने की लालसा हुई उसने देवी लक्ष्मी की आराधना की. उसकी आराधना से लक्ष्मी प्रसन्न हुईं तथा उसे साक्षात् दर्शन देकर वरदान दिया कि उसे उच्च पद और सम्मान प्राप्त होगा. दूसरे दिन वह वैरागी साधु राज दरबार में पहुंचा. वरदान मिलने के बाद उसे अभिमान हो गया. उसने राजा को धक्का मारा जिससे राजा का मुकुट नीचे गिर गया. ये देखकर दरबार में बैठे सभी लोग साधु को मारने के लिए दौड़ पड़े. परन्तु इसी बीच राजा के गिरे हुए मुकुट से एक कालानाग निकल कर भागने लगा. ये देखकर सभी ने सोचा कि साधु ने पहले से खतरे को भांपकर राजा के प्राणों की रक्षा की है. राजा ने प्रसन्न होकर साधु को मंत्री बना दिया.
मंत्री बनने के कुछ दिनों बाद साधु को फिर से चालाकी सूझी और उसने राजा को मारने की कोशिश की. राजा को मारने के लिए साधु उसका हाथ पकड़कर उसे घसीटकर बाहर लाने लगा. ये देखकर राजमहल के लोग राजा को बचाने के लिए राजा के पीछे दौड़ पड़े. सभी के बाहर जाते ही भूंकप आ गया और महल गिर. इस तरह फिर से सभी ने सोचा कि साधु ने राजा की जान बचाई है.
भगवान गणेश की प्रतिमा को हटाने से हुए रूष्ठ
राजा के महल में एक गणेश जी की प्रतिमा थी. एक दिन साधु ने वह प्रतिमा यह कह कर वहां से हटवा दी कि यह प्रतिमा देखने में बिल्कुल अच्छी नहीं है. साधु के इस कार्य से भगवान गणेश जी रुष्ठ हो गए. उसी दिन से उस मंत्री बने साधु की बुद्धि बिगड़ गई वह उल्टा पुल्टा करने लगा. तभी राजा ने उस साधु से क्रोधित होकर उसे कारागार में डाल दिया.
देवी लक्ष्मी ने दिया साधु को सुझाव
अपने बुरे दिनों में साधु देवी लक्ष्मी की आराधना करने लगा. लक्ष्मी जी ने दर्शन देकर उससे कहा कि तुमने भगवान गणेश का अपमान किया है, इसलिए गणेश जी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न करो. लक्ष्मीजी का आदेश पाकर साधु भगवान गणेश की आराधना करने लगा. इससे गणेश जी का क्रोध शान्त हो गया. गणेश जी ने राजा के स्वप्न में आ कर कहा कि साधु को पुनः मंत्री बनाने की इच्छा जताई.
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