महाभारत के युद्ध को इतिहास के सबसे भीषण रक्तपात वाले युद्धों में से एक माना जाता है. इस युद्ध से जुड़ी हुई कहानियां आज भी याद की जाती है. देखा जाए तो 18 दिनों तक चले इस युद्ध से हम आज भी बहुत कुछ सीख सकते हैं. श्रीकृष्ण ने युद्ध के समय दुविधा में घिरे अर्जुन को गीता सार द्वारा जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं से लड़ने की शिक्षा दी थी. महाभारत में वर्णित एक ऐसी ही कहानी है कर्ण और अर्जुन के युद्ध के समय की.
महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे. युद्ध बहुत भयंकर होता जा रहा था. दोनों योद्धा एक-दूसरे पर शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे. कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए सर्प बाण चलाने का निर्णय किया. इस बाण को कर्ण ने वर्षों से अर्जुन पर प्रहार के लिए रखा था. वास्तव में ये बाण पाताललोक में अश्वसेन नाम का नाग था, जो अर्जुन को अपना शत्रु मानता था. इसका कारण ये था कि खांडववन में अर्जुन ने उसकी माता का वध किया था. अश्वसेन तभी से अर्जुन को मारने के लिए मौके की तलाश में था.
कर्ण को सर्प बाण का प्रयोग करते देख अश्वसेन खुद बाण पर विराजित हो गया. कर्ण ने अर्जुन पर तीर से निशाना बनाया. अर्जुन बाण का रूप धारण किए नाग को पहचान नहीं पाए जबकि अर्जुन का रथ चला रहे भगवान कृष्ण ने अश्वसेन को तत्काल ही पहचान लिया. अर्जुन के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पैरों से रथ को दबा दिया. रथ के पहिए जमीन में धंस गए. घोड़े बैठ गए और तीर अर्जुन के गले की बजाय उसके मस्तक पर जा लगा. इससे उसका मुकुट छिटककर धरती पर जा गिरा.
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इस तरह श्रीकृष्ण ने अपने पार्थ अर्जुन को बचा लिया. अर्जुन और भगवान कृष्ण रथ के धंसे पहिए निकालने के लिए नीचे उतरे. तभी मौका देखकर कर्ण ने अर्जुन पर वार शुरू कर दिया और कृष्ण को 12 तीर मारे. पूरी सृष्टि के रचयिता भगवान श्रीकृष्ण ने उन बाणों के घाव को सह लिया. भगवान ने अर्जुन को अश्वसेन के बारे में बताया. अर्जुन ने छह तीरों से अश्वसेन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं पीड़ा सहते हुए अपने परमप्रिय अर्जुन को बचा लिया…Next
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