वृंदावन धाम के बांके बिहारी मंदिर में कृष्ण भगवान का काले रंग के पत्थर का विग्रह है जो मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों को मोहित कर लेता है. विग्रह के क्षणिक दर्शन मात्र से श्रद्धालु अपनी सुधबुध बिसराकर इस अद्भुत छवि के सौंदर्य से वशीभूत हो जाते हैं. पौराणिक कथाओं के आधार पर बांके बिहारी के इस विग्रह की उत्पत्ति निधिवन में हुई थी.
संगीत सम्राट तानसेन के गुरु श्री हरिदास जी, श्री कृष्णा की भक्ति में लीन होकर निधिवन के जंगल में भजन संगीत किया करते थे. राधे-कृष्णा स्वयं उनके रसमय भक्ति संगीत को सुनने निधिवन आते थे. एक दिन श्री हरिदास जी के शिष्यों ने गुरु जी से कृष्ण के दर्शन की इच्छा जाहिर की.
गुरु जी ने आंखे बंद कर संगीत प्रारम्भ किया जिसको सुनने के लिए हमेशा की तरह राधे- कृष्णा प्रकट हुए, चारो तरफ अलौकिक प्रकाश बिखर गया ,प्रकाश की चमक से शिष्यों के नेत्र बंद होने लगे. गुरु जी ने कहा, ‘प्रभु हमारे नेत्र आपके तेजस रूप को सहन नहीं कर पा रहे हैं, हम जी भर आपकी छवि का दर्शन चाहते हैं.’ तब कृष्ण भगवान ने कहा, ‘मैं भी भक्ति और प्रेम के वशीभूत हूं और तुमको छोड़कर नहीं जाना चाहता’.
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इसी कथन के साथ राधा- कृष्ण ने एक होकर काले पत्थर के विग्रह का रूप धारण कर लिया. कुछ वर्षों के पश्चात इस विग्रह को बांके बिहारी मंदिर में स्थापित कर दिया गया और भक्त जन आज तक कृष्ण के साक्षात दर्शनों का लाभ उठा रहे हैं, जिसके दर्शन करने पर साक्षात कन्हैया का अनुभव होता. कहते हैं यदि कोई बिहारी जी के मुखारबिंद को एकटक निहारे तो बिहारी जी प्रेम वश या भक्तों की व्यथा से द्रवित होकर उनके साथ चले जाते हैं.
इसी वजह इस छवि को पर्दे में रखा जाता है. और भक्तों को इसके क्षणिक दर्शन मिलते हैं. दर्शन के समय पर्दे को लगातार उठाया और गिराया जाता है, ताकि कन्हैया की नजरें किसी से चार ना हो और वह इस पवित्र स्थल को छोड़कर किसी के साथ न चले जाएं… Next
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