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महाभारत में शकुनि के अलावा थे एक और मामा, दुर्योधन को दिया था ये वरदान

धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय जैसे कई रूपों को समेटे कुरुक्षेत्र के युद्ध को धर्मयुद्ध भी कहा जाता है. जिसने भारत के इतिहास को एक नया अध्याय दिया. महाभारत के युद्ध को वर्तमान स्थिति से भी जोड़कर देखा जाता है. कहा जाता है कि कलियुग की भयावह स्थिति के लिए महाभारत का युद्ध भी जिम्मेदार है. महाभारत में कई पात्र ऐसे भी थे जिनके बारे लोग कम ही जानते हैं. ऐसे ही एक पात्र हैं शल्य. शल्य पांडवों के मामा थे. अर्थात शल्य की बहन माद्री का विवाह पांडु से हुआ था. नकुल और सहदेव उनके सगे भांजे थे. पांडवों को विश्वास था कि शल्य उनके पक्ष में ही रहेंगे. लेकिन दुर्योधन ने बड़ी चालाकी से शल्य को अपनी तरफ से युद्धभूमि में लड़ने के लिए मजबूर कर दिया था.


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वास्तव में, एक दिन शल्य अपने भांजों से मिलने के लिए उनके पास आ रहे थे. इस दौरान शल्य की विशाल सेना दो-दो कोस पर पड़ाव डालती चल रही थी. दुर्योधन को समाचार पहले ही मिल गया था. उसने मार्ग में जहां-जहां सेना के पड़ाव के उपयुक्त स्थानों पर कारीगर भेजकर सभा-भवन एवं निवास स्थान बनवा दिए. ये देखकर शल्य के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. साथ ही हर पड़ाव पर बेहतर भोजनादि की व्यवस्था करवा दी गई थी. मद्रराज शल्य और उनकी सेना का मार्ग में सभी पड़ावों पर भरपूर स्वागत हुआ. शल्य लगा कि यह सब व्यवस्था युधिष्ठिर ने की है. हस्तिनापुर के पास पहुंचने पर विश्राम स्थलों उसे देखकर शल्य ने पूछा ‘युधिष्ठिर के किन कर्मचारियों ने यह व्यवस्था की है? उन्हें ले आओ. मैं उन्हें पुरस्कार देना चाहता हूं.’


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ये सुनने के साथ छुपा हुआ दुर्योधन शल्य के सामने आया और हाथ जोड़कर बोला ‘मामा श्री ये सभी व्यवस्था मैंने की है. ये सुनने के साथ शल्य का प्रेम उमड़ पड़ा और उन्होंने दुर्योधन से वर मांगने को कहा. ये सुनकर दुर्योधन ने कहा ‘आप सेना के साथ युद्ध में मेरा साथ दें और मेरी सेना का संचालन करें.’ यह प्रस्ताव शल्य को स्वीकार करना पड़ा. यद्यपि उन्होंने युधिष्ठिर से भेंट की, नकुल-सहदेव पर आघात न करने की अपनी प्रतिज्ञा दुर्योधन को बता दी और युद्ध में कर्ण को हतोत्साहित करते रहने का वचन भी युधिष्ठिर को दे दिया. किंतु युद्ध में उन्होंने दुर्योधन का पक्ष लिया और इस तरह दुर्योधन की सेना का बल थोड़ा अधिक बढ़ गया…Next

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