हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार किसी मूर्ति के खंडित होते ही उसे विसर्जित करने या किसी वटवृक्ष के पास रखा जाता है. ऐसा करने के पीछे सभी लोगों के अपने-अपने तर्क है. जहांं एक ओर कुछ लोगों का मानना है कि भगवान की प्रतिमा में प्राण होते हैं इसलिए उनकी प्रतिमा टूट जाने पर उन्हें भी किसी भक्त की भांति ही पीड़ा होती है. दूसरी ओर कुछ लोगों का तर्क है कि यदि हमारे शरीर के किसी अंग में चोट लग जाए तो हम उस चोट को यूं ही नहीं छोड़ देते बल्कि उसका उपचार करवाते हैं तो भला भगवान की प्रतिमा को खंडित होने पर उन पर बिना कोई ध्यान दिए मंदिर में कैसे रख सकते हैं.
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हम में से कई लोग मूर्ति और प्रतिमा को एक समान ही समझते हैं. दोनों के अर्थ में कोई अधिक अंतर नहीं है लेकिन भगवान की मूरत को प्रतिमा कहा जाता है, क्योंकि लोगों को विश्वास होता है कि भगवान की मूर्ति सजीव होती है. जबकि किसी कला, जीव आदि की बनाई हुई छवि को मूर्ति कहा जाता है. लेकिन आधुनिक जीवनशैली में भगवान की मूरत को मूर्ति ही कहा जाता है. अब बात करें खंडित चीजों की तो, इनमें एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा होती है. लेकिन इन सभी तर्कों से परे भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जिनकी खंडित मूर्ति की भी पूजा होती है.
इसलिए होती है शिव की खंडित मूर्ति की पूजा
शिव को सभी देवताओं में सबसे विशेष दर्जा दिया गया है क्योंकि सांसरिक मोह-माया से दूर शिव अपने तप में लीन रहते हैं. वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हैं. इसके अलावा शिव को भौतिक नियमों से कोई सरोकार नहीं है. उनके लिए हर चीज की परिभाषा अलग है. शिव को निरंकारी माना जाता है. यानि शिव को वास्तव में किसी ने नहीं देखा है. तस्वीरों और मूर्तियों में उनका जो रूप दिखाई पड़ता है वो भक्तों की कल्पना मात्र है.
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इस प्रकार जिसका कोई आकार, रंग, रूप आदि न हो उसे भला क्या क्षति हो सकती है. महादेव का न तो आदि है और न ही अंत. इस प्रकार शिव की मूर्ति कितनी भी खंडित क्यों न हो जाए हमेशा पूज्यनीय होती है. साथ ही शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का पूजन किसी भी दिशा से किया जा सकता है लेकिन पूजन करते वक्त भक्त का मुख उत्तर दिशा होना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है…Next
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