कहते हैं कि भूलवश की गई किसी गलती को एक बार भगवान भी क्षमा कर देते हैं. लेकिन फिर समय रहते गलतियों को सुधारना बेहद आवश्यक है. वरना यही छोटी-छोटी गलतियां एक दिन हमारे पतन का कारण बन सकती हैं. महाभारत से संबधित खंड ‘वनपर्व’ में शिशुपाल की सौ गलतियों को क्षमा करने से संबधित एक कथा वर्णित है. शिशुपाल रिश्ते में श्रीकृष्ण का भाई था. जन्म के समय शिशुपाल की तीन आंखें और चार भुजाएं थी. शिशुपाल के जन्म के समय एक आकाशवाणी हुई थी. जिसके अनुसार शिशुपाल की मृत्यु श्रीकृष्ण के हाथों लिखी थी. इस भविष्यवाणी को सुनकर शिशुपाल की मां बहुत भयभीत हो गई.
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समय बीतने के साथ ही शिशुपाल की एक आंख और दो भुजाएं अदृश्य हो गई. लेकिन शिशुपाल की मां को अभी भी अपने पुत्र के प्राणों का भय था. किशोरावस्था में एक दिन शिशुपाल की माता ने श्रीकृष्ण से अपने पुत्र को न मारने का वचन लिया. श्रीकृष्ण तो पहले से सबकुछ जानते थे. फिर भी उन्होंने एक मां के वचन की लाज रखते हुए कहा ‘मैं हमेशा शिशुपाल के पापों को क्षमा नहीं कर सकता, इसलिए आप स्वयं बताइए कि मैं आपके पुत्र की कितनी गलतियों को क्षमा कर सकता हूं. इस पर शिशुपाल की माता ने विचार किया कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में सौ गलतियां नहीं कर सकता.
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क्योंकि इससे पहले ही वो अपनी गलतियों को सुधारकर, उसी गलती को नहीं दोहराएंगा. ऐसा विचार करके माता ने श्रीकृष्ण से कहा ‘प्रभु, मुझे भलीभांति ज्ञात है कि नियति को स्वंय आप भी नहीं बदल सकते. नियति तो मनुष्य के कर्मों पर आधारित होती है, इसलिए मैं आपसे ये वचन मांगती हूं कि आप मेरे पुत्र शिशुपाल के सौ पाप क्षमा करने की कृपा करेंगे’. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की माता और अपनी बुआ के इस वचन को तत्काल स्वीकार कर लिया और शिशुपाल के द्वारा किए गए सौ भंयकर पापों को क्षमा करने के बाद 101 पाप पर शिशुपाल का वध कर दिया…Next
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