कहा जाता है कि किसी भी स्थिति से डरकर भागना नहीं चाहिए वरना इंसान और भी अधिक परेशानियों में घिर जाता है. ऐसी मान्यता के पीछे तर्क ये है कि भागने से परेशानी किसी सीमा तक स्थगित हो सकती है परंतु एक समय के बाद वो परेशानी दुबारा अपने विकराल रूप के साथ आपके लिए संकट उत्पन्न कर सकती है. लेकिन महान आचार्य चाणक्य ने जीवन की ऐसी स्थितियों के बारे में बताया है जिसका सामना करने से आपको हानि उठानी पड़ सकती है इसलिए उन चार परिस्थितियों में उस स्थान से चले जाने में ही इंसान की भलाई समझी जाती है. आइए हम आपको बताते हैं वो चार परिस्थितियां.
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दंगे या मारपीट से भागना उचित
यदि किसी स्थान पर दंगा या उपद्रव हो जाता है तो उस स्थान से तुरंत भाग जाना चाहिए. यदि हम दंगा क्षेत्र में खड़े रहेंगे तो उपद्रवियों की हिंसा का शिकार हो सकते हैं. साथ ही, शासन-प्रसाशन द्वारा उपद्रवियों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाही में भी फंस सकते हैं. अत: ऐसे स्थान से तुरंत भाग निकलना चाहिए.
शत्रु के अचानक हुए हमले से बचकर भागना उचित
हमारे राज्य पर किसी दूसरे राजा ने आक्रमण कर दिया है और हमारी सेना की हार तय हो गई है तो ऐसे राज्य से भाग जाना चाहिए. अन्यथा शेष पूरा जीवन दूसरे राजा के अधीन रहना पड़ेगा या हमारे प्राणों का संकट भी खड़ा हो सकता है. यह बात चाणक्य के दौर के अनुसार लिखी गई है, जब राजा-महाराजाओं का दौर था. उस काल में एक राजा दूसरे राज्य पर कभी भी आक्रमण कर दिया करता था. तब हारने वाले राज्य के आम लोगों को भी जीतने वाले राजा के अधीन रहना पड़ता था. आज के दौर में ये बात इस प्रकार देखी जा सकती है कि यदि हमारा कोई शत्रु है और वह हम पर पूरे बल के साथ एकाएक हमला कर देता है तो हमें उस स्थान से तुरंत भाग निकलना चाहिए. शत्रु जब भी वार करेगा तो वह पूरी तैयारी और पूरे बल के साथ ही वार करेगा, ऐसे में हमें सबसे पहले अपने प्राणों की रक्षा करनी चाहिए. प्राण रहेंगे तो शत्रुओं से बाद में भी निपटा जा सकता है.
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अकालग्रस्त स्थान से भागना उचित
यदि हमारे क्षेत्र में अकाल पड़ गया हो और खाने-पीने, रहने के संसाधन समाप्त हो गए हों तो ऐसे स्थान से तुरंत भाग जाना चाहिए. यदि हम अकाल वाले स्थान पर रहेंगे तो निश्चित ही प्राणों का संकट खड़ा हो जाएगा. खान-पीने की चीजों के बिनाअधिक दिन जीवित रह पाना असंभव है. अत: अकाल वाले स्थान को छोड़कर किसी उपयुक्त स्थान पर चले जाना चाहिए.
नीच व्यक्ति की संगत से भागना उचित
चाणक्य कहते हैं यदि हमारे पास कोई नीच व्यक्ति आ जाए तो उस स्थान से किसी भी प्रकार भाग निकलना चाहिए. नीच व्यक्ति की संगत किसी भी पल परेशानियों को बढ़ा सकती है. जिस प्रकार कोयले की खान में जाने वाले व्यक्ति के कपड़ों पर दाग लग जाता है, ठीक उसी प्रकार नीच व्यक्ति की संगत हमारी प्रतिष्ठा पर दाग लगा सकती है. अत: ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए…Next
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