हिंदुओं का महान धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक ‘महाभारत’ आज भी लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय है. इस महान काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र आदि के बारे में लोग आज भी जानना चाहते हैं. इस महान ग्रंथ के भीतर जितनी भी रचनाएं हैं वे जानकारी से पूर्ण हैं व इनके बारे में जितना भी पढ़ा जाए वो कम है. महाभारत की यह कथाएं हमें उस युग की सभी जानकारी देती हैं लेकिन उन्हीं पन्नों के बीच कुछ बातें ऐसी भी हैं जो आमतौर पर चर्चा का विषय नहीं होती. ये हैं महाभारत के जाने माने चेहरों की प्रेम कथाएं जिनमें से कुछ तो लोगों के बीच प्रचलित है और अन्य अभी भी इन पौराणिक इतिहास के पन्नों में छिपी हुई है.
श्री कृष्ण की 16,108 पत्नियां
श्री कृष्ण अपने बाल अवतार से ही सबके प्रिय थे इसलिए तो वे हरदम गोपियों से घिरे रहते थे. इसी के फलस्वरूप श्री कृष्ण की 100 या 200 नहीं बल्कि कुल 16,108 पत्नियां थी जिनमें से 16,00 पत्नियों ने उनका साथ पाने के लिए बार-बार नया अवतार लिया था.
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द्रौपदी व पांडव
द्रौपदी का पांडवों के साथ विवाह हुआ और विवाह के बाद उसने हर एक पति से बराबर स्नेह रखा व किसी को भी उदास होने का या निराश होने का मौका नहीं दिया. वहीं पांडवों ने भी अपनी पत्नी द्रौपदी को हर समय खुश रखने का पूर्ण प्रयास किया.
गांधारी व धृतराष्ट्र
हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र व उनकी पत्नी गांधारी के बीच का स्नेह उनके विवाह के पश्चात ही उतपन्न हुआ. जब गांधारी ने पहली बार धृतराष्ट्र के बारे में जाना तो उन्हें आभास हुआ कि उनके पति नेत्रहीन हैं व आंखों से दुनिया को देखने का सुख प्राप्त नहीं कर सकते, तो वह स्वंय कैसे यह सुख अकेले भोग सकती हैं. ऐसा अनुभव करते ही गांधारी ने भी अपनी आंखों पर ताउम्र पट्टी बांधने की निश्चय कर लिया था.
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अर्जुन व उलूपी
उलूपी एक नाग की पुत्री थी और वह राजकुमार अर्जुन की ओर काफी आकर्षित हुई, उसने राजकुमार का अपहरण कर लिया. यह तब कि बात है जब अर्जुन अज्ञातवास भोग रहे थे और अपने नगर से दूर थे. अपहरण के दौरान एक स्त्री के साथ अविवाहित रिश्ते को अंजाम देना उस समय पाप के बराबर था जिस कारणवश अर्जुन व उलूपी ने विवाह कर लिया.
श्री कृष्ण व रुक्मिणी
रुक्मिणी के प्यार को स्वीकार करते हुए श्री कृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह करने का फैसला किया. उन्होंने अर्जुन के साथ मिलकर रुक्मिणी का अपहरण करने योजना बनाई, और जब रुक्मिणी का स्वयंवर रचा गया तब वहां से कृष्ण उसे हर ले गये. जिन लोगों ने उनका विरोध किया वे पराजित हुए.
अर्जुन व चित्रांगदा
चित्रांगदा मणीपुर की राजकुमारी व राजा चित्रवाहन की पुत्री थी जो कि बेहद खूबसूरत थी. जब वनवासी अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो उसके रूप पर मुग्ध हो गये. उन्होंने नरेश से उसकी कन्या का हाथ मांगा, लेकिन राजा की एक शर्त थी. राजा चित्रवाहन ने अर्जुन से चित्रांगदा का विवाह करना इस शर्त पर स्वीकार कर लिया कि उसका पुत्र चित्रवाहन के पास ही रहेगा क्योंकि पूर्व युग में उसके पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए थे. अर्जुन इस बात के लिए सहमत हो गए व विवाह के पश्चात पुत्र होने के कुछ सालों के बाद अपनी पत्नी व पुत्र को मणिपुर में ही छोड़कर वापिस इंद्रप्रस्थ लौट आए.
सुभद्रा व अर्जुन
सुभद्रा को महाभारत में श्री कृष्ण की बहन के नाम से ही जाना गया है. सुभद्रा व अर्जुन दोनों ही एक दूसरे को बहुत प्रेम करते थे लेकिन सुभद्रा के बड़े भाई बलराम उनका ब्याह दुर्योधन से करना चाहते थे पर कृष्ण के प्रोत्साहन से अर्जुन इन्हें द्वारका से भगा लाए.
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हिडिंबा व भीम
हिडिंबा एक राक्षसी थी जो इंसानों को खाती थी. उसे कुंती पुत्र भीम जो कि महाभारत के बलशाली योद्धाओं में से एक हैं उनसे प्रेम हो गया और उन्हीं के प्रेम ने हिडिंबा को बिलकुल बदल दिया. कहा जाता है कि दोनों का विवाह हुआ लेकिन भीम केवल कुछ ही समय के लिए हिडिंबा के पास रहे और फिर उन्हें अकेला छोड़कर आए गए. हिडिंबा ने एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम घटोकच था.
सत्यवती व पराशर
महाभारत युग के विख्यात गुरुओं में से एक थे पराशर ऋषि जिनके पास ज्ञान का भंडार था. सत्यवती एक मछुवारे की पुत्री थी जो लोगों को नदी पार करने में नाव के सहारे मदद करती थी. तभी संत पराशर की नजर उनपर पड़ी और वो उनकी खूबसूरती में लीन हो गए उनसे प्रेम संबंधों की आग्रह कर बैठे.
सत्यवती ने पराशर के प्रस्ताव को स्वीकार किया लेकिन तीन शर्तें रखी, पहली शर्त कि दोनों को प्रेम संबंधों में लीन होते हुए कोई ना देखे, तो पराशर ने आसपास एक धुंध उत्पन्न कर दी. दूसरी शर्त यह थी कि पराशर के करीब आने पर भी सत्यवती का कौमार्य ना टूटे जिसके लिए पराशर ने उन्हें वरदान दिया कि पुत्र को जन्म देने के बाद भी सत्यवती का कौमार्य वापिस लौट आएगा. और तीसरी शर्त यह थी कि अपने शरीर से मछली की आती दुर्गंध से परेशान सत्यवती ने इसका अंत मांगा तो पराशर ने यह वरदान दिया कि तुम्हारे शरीर से ताउम्र एक दिव्य सुगंध आती रहेगी. सत्यवती व पराशर की एक संतान भी हुई जो वेदों में ‘वेद व्यास’ के नाम से प्रसिद्ध है.
सत्यवती व शांतनु
संत पराशर से मिले वरदान जिसकी बदौलत सत्यवती के शरीर से दिव्य सुगंध आती थी उसने शांतनु को अपनी ओर आकर्षित किया. सत्यवती की खूबसूरती में मगन शांतनु ने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा, तो सत्यवती ने बताया कि उसके पिता इस बात के लिए कभी भी राजी नहीं होंगे और हुआ भी यही. शांतनु की लाख कोशिशों के बाद भी सत्यवती के पिता ना माने लेकिन अंत में गंगा पुत्र ने इस कार्य को आसान बनाया व शांतनु व सत्यवती का विवाह हुआ.
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