संसार में बहुत से लोग पूरी जिन्दगी ईमानदारी से मेहनत करते हैं. धन सुख पाने के लिए जीवनभर प्रयत्नशील रहते हैं. उन्हें अपने श्रम के अनुसार भी फल नहीं मिल पाता है. हमारे आस-पास कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें उनके मेहनत या श्रम से ज्यादा फल मिल जाता है. असफलता से चिंतित होना मानव की प्रवृति है. सफलता, असफलता को लेकर महान विचारक आचार्य चाणक्य की कई नीतियाँ अमल में लायी जाती है. यह विचार निश्चित रूप से मानव जीवन में सफलता के प्रतिशत को बढ़ाने वाली साबित हो सकती है.
सफलता की पहली नीति: आचार्य चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को हमेशा यह भान होना चाहिए कि अभी कैसा वक्त चल रहा है. अपने सुख और दुःख को देखकर किसी नये कार्य को करने का निर्णय लेना चाहिये. ध्यान रहे कि सुख के दिन हैं तो अच्छा काम करते रहें और यदि दुःख का समय हैं तो अच्छे काम करते हुए धैर्य बनाये रखें. दुःख के दिनों में अपना धैर्य खोने पर जीवन निरर्थक हो सकता है.
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सफलता की दूसरी नीति: सफलता के लिए हमें अपने मित्र और मित्र के वेश में शत्रु को पहचानने के गुण को विकसित करना चाहिये. हम शत्रुओं से सावधान होकर ही कार्य करते हैं परन्तु मित्र वेश में छुपे शत्रु को नहीं पहचान पाते. सफलता के लिए सच्चे मित्र से मदद मांग कर आप आगे बढ़ें. लेकिन यदि मित्र के वेश में आपने शत्रु से मदद मांग लिया तो आपकी मेहनत बेकार हो सकती है.
सफलता की तीसरी नीति: किसी निश्चित उद्देश्य को पाने के लिए आपको स्थान, हालात, सहकर्मी आदि के विषय में जानकारी रखनी चाहिये. अपने कार्यस्थल के सहकर्मियों की मानसिकता को परख होनी चाहिये. इन बातों को ध्यान में रखकर अपना ध्येय साधना चाहिए. ऐसे में असफलता की गुंजाइश कम रहती है.
सफलता की चौथी नीति: जीवन में सफलता के लिए धन के आय और व्यय की सही-सही जानकारी होनी चाहिए. व्यक्ति को कभी भी आवेश में आकर आय से अधिक व्यय कतई नहीं करनी चाहिये. थोड़ा-थोड़ा हो सही पर अपने आय से धन को संचित करना चाहिए.
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सफलता की पांचवी नीति: व्यक्ति को हमेशा अपने सामर्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. अपने सामर्थ्य के हिसाब से ही कार्य करने की कोशिश की जानी चाहिये. सामर्थ्य से अधिक कार्य लेने पर असफलता की संभावना बढ़ जाती है. ऐसी परिस्थिति में कार्य-स्थल और समाज में हमारी छवि पर बुरा असर होगा. Next…
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