कहते हैं हर इंसान अपने भाग्य के साथ जन्म लेता है. ऐसा भी माना जाता है कि भाग्य पिछले जन्म में किए गए कर्मो पर निर्भर करता है. लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि इस जन्म में अच्छे आचरण को अपनाकर अपने भाग्य को बदला नहीं जा सकता है. हमारे वर्तमान में किए हुए कर्म भविष्य को नियोजित करते हैं. हिंदू धर्म की मान्यतानुसार संसार में अधिकतर कर्मो का फल पहले से निर्धारित कर दिया गया. जिसे करने के बाद कोई भी मनुष्य उसके फल से बच नहीं सकता. महाभारत में दुर्योधन से जुड़ा ऐसा ही प्रसंग मिलता है. जिसमें दुर्योधन को अपनी मृत्यृशैया पर अनुभव होता है कि काश उसने जीवन में कुछ विशेष गलतियां नहीं की होती तो आज उसकी और उसके भाईयों की ये दशा नहीं होती. जबकि वास्तव में उसके द्वारा किए जा रहे सभी दुष्कर्मों का लेखा-जोखा उसका भाग्य रख रहा था. जिसके कारण उसको अंत में पराजित होना ही था.
महाभारत के युद्ध के आखिरी दिनों में भयंकर रक्तपात हुआ. युद्ध में दुर्योधन को छोड़कर सारे कौरव मारे जा चुके थे. भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करते हुए दुर्योधन को लहुलुहान कर दिया था. दुर्योधन मृत्यृशैया पर अपनी मृत्यृ का इंतजार कर रहा था. मृत्यृ उसके बेहद करीब थी. ऐसे में दुर्योधन को अभी भी अपनी हार और पाडंवों की जीत पर विश्वास नहीं हो रहा था. वो बार-बार अपने अतीत के विषय में स्मरण करके पछता रहा था. उसे लग रहा था कि काश उसने जीवन में मुख्य रूप से वो तीन गलतियां नहीं की होती तो आज जीत का नायक वही होता. अपने हाथ की तीन अंगुलियों को ऊपर उठाकर वो बार-बार कुछ बड़बड़ा रहा था. लेकिन पीड़ा की वजह से किसी को भी उसकी ध्वनि साफ सुनाई नहीं दे रही थी. श्रीकृष्ण बहुत देर से उसकी इस अवस्था को देख रहे थे. युद्ध में हुई जनहानि से उनका मन बहुत व्याकुल था. युद्ध में हार-जीत किसी की भी हुई हो लेकिन भगवान होने के नाते उनके लिए तो पूरी सृष्टि ही अपने अबोध बालक के समान थी.
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दुर्योधन को देखकर उन्हें समझते हुए देर नहीं लगी कि उसके मन में क्या चल रहा है. श्रीकृष्ण दुर्योधन के समीप गए. श्रीकृष्ण को समीप खड़ा देखकर दुर्योधन ने अपनी तीन अगुंलियां हवा में लहराते हुए कहा ‘कि यदि मैं जीवन में तीन भूल नहीं करता तो आज मुझे पराजय का मुहं नहीं देखना पड़ता.’ दुर्योधन ने भारी मन से कहा ‘युद्ध के आरंभ होने से पूर्व आपके स्थान पर नारायणी सेना को चुनना, अपनी माता के सामने लंगोट पहन कर जाना और सबसे अंत में रणभूमि पर उतरना ही मेरी हार के मुख्य कारण है. दुर्योधन के मुख से ये बात सुनकर श्रीकृष्ण ने बड़े शांत भाव में कहा ‘वत्स तुम्हारे कर्मों के कारण, हार उसी दिन निर्धारित हो चुकी थी जिस दिन तुमने छल से अपने भाईयों को जिंदा जलाकर मारने का प्रयास किया था. इसके अलावा भरी सभा में अपनी कुलवधु दौपद्री को ज्येष्ठ होते हुए नग्न करने का आदेश देना, तुम्हारी बहुत भंयकर भूल थी. तुमने अपने कर्मों से अपना भाग्य स्वंय लिखा है’…Next
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