भगवान शिव की तीसरी आंख के संदर्भ में जिस एक कथा का सर्वाधिक जिक्र होता है वह है कामदेव को शिव द्वारा अपनी तीसरी आंख से भस्म कर देने की कथा. ऐसी मान्यता है कि उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ही भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जलाकर भस्म किया था. शिव पुराण में वर्णित यह वही जगह है जिसे हम कामेश्वर धाम के नाम से भी जानते हैं.
अपनी तीसरी आंख से भस्म कर देने की कथा
शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने की कथा (कहानी) के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नहीं कर पाती है और यज्ञ वेदी में कूदकर आत्मदाह कर लेती है. इस बात की जानकारी जब भगवान शिव को मिलती है तो वह अपने तांडव से पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा देते हैं. इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शंकर को समझाने पहुंचते हैं. महादेव उनके समझाने से शान्त होकर, परम शान्ति के लिए, तमसा-गंगा के पवित्र संगम पर आकर समाधि में लिन हो जाते हैं.
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इसी बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है जिससे की उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी. यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योंकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि में लीन हो चुके थे, इसलिए वह कुछ भी नहीं कर सकते थे.
तारकासुर का उत्पात दिनों दिन बढ़ता जा रहा था और वह स्वर्ग पर अधिकार करने की चेष्टा करने लगा. यह बात जब देवताओं को पता चली तो घबरा गए. उन्होंने निश्चय किया कि जब तक भगवान शिव को समाधि से नहीं जगाया जाएगा तब तक तारकासुर के उत्पात को नहीं रोका जा सकता. इस काम को करने के लिए देवताओं ने कामदेव को सेनापति बनाया. कामदेव, महादेव के समाधि स्थल पहुंचकर अनेकों प्रयत्नों के द्वारा महादेव को जगाने का प्रयास करते हैं, जिसमें अप्सराओं के नृत्य इत्यादि शामिल होते थे, लेकिन सब प्रयास बेकार साबित हुए. अंत में कामदेव स्वयं भोले नाथ को जगाने लिए खुद को आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छुपाकर भगवान शिव पर पुष्प बाण चलाते हैं. पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय में लगता है, और उनकी समाधि टूट जाती है. अपनी समाधि टूट जाने से भगवान शिव बहुत क्रोधित होते हैं और आम के पेड़ के पत्तों के पीछे खड़े कामदेव को अपने त्रिनेत्र (तीसरी आंख) से जला कर भस्म कर देते हैं. कामेश्वर धाम में आज भी वह आधा जला हुआ, हरा भरा आम का वृक्ष है जिसके पीछे छिपकर कामदेव ने समाधि में लीन भोले नाथ को समाधि से जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था.
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वैसे यह कथा प्रतिकात्मक है जो यह दर्शाती है कि कामदेव हर मनुष्य के भीतर वास करता है पर यदि मनुष्य का विवेक और प्रज्ञा जागृत हो तो वह अपने भीतर उठ रहे अवांछित काम के उत्तेजना को रोक सकता है और उसे नष्ट कर सकता हैं.
संतों की तपोभूमि
वैसे मान्यता यह भी है कि कामेश्वर धाम कई संतों की तपोभूमि रहा है. त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम लक्ष्मण आए थे जिसका उल्लेख बाल्मीकि रामायण में भी है. अघोर पंथ के प्रतिष्ठापक श्री कीना राम की प्रथम दीक्षा यहीं पर हुर्इ थी. कहा यह भी जाता है कि यहां पर दुर्वासा ऋषि ने भी तप किया था.
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