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पांडव वंशज की इस गलती से कलियुग का हुआ आगमन

आज हर तरफ मार-काट मची हुई है. मानव-मानव का दुश्मन बन गया है. आज कलियुग में अधिकतर लोग अपने नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर अपना हित साधते नजर आते हैं. ऐसा लगता है कि काम के अलावा किसी को किसी से लगाव नहीं है. मानवता को रोज शर्मसार होते हुए देखकर हम सभी के मुंह से जाने-अंजाने ये बात निकल ही जाती है ‘कलियुग है कलियुग, जाने कब जाएगा ये कलियुग’.


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लेकिन क्या आपने वाकई कभी ऐसा सोचा है कि कलियुग का आगमन क्यों और कैसे हुआ? वैसे तो कलियुग की शुरुआत से जुड़ी हुई ऐसी कई कहानियां है लेकिन इन कहानियों के अलावा महाभारत से जुड़े एक ग्रंथ ‘मौसल पर्व’ में, श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद किस तरह धरा पर कलियुग ने अपने पैर पसार लिए इस बारे में बताया गया है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की हार होने के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर का राज-काज संभाला था. लेकिन जल्द ही उनके राज्य में कई सारी अप्रिय घटना घटने लगी. कृष्ण कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद द्वारिका चले आए थे. यादव-राजकुमारों ने अधर्म का आचरण शुरू कर दिया तथा मदिरा और मांस का सेवन भी करने लगे. परिणाम यह हुआ कि कृष्ण के सामने ही यादव वंशी राजकुमार आपस लड़ मरे. कृष्ण के पुत्र साम्ब भी उनमें से एक थे. बलराम ने प्रभास तीर्थ में जाकर समाधि ली. कृष्ण भी दुखी होकर प्रभास तीर्थ चले गए, जहां उन्होंने मृत बलराम को देखा. वे एक पेड़ के सहारे योगनिद्रा में पड़े रहे. उसी समय जरा नाम के एक शिकारी ने हिरण के भ्रम में एक तीर चला दिया जो कृष्ण के तलवे में लगा और कुछ ही क्षणों में वे भी परलोक सिधार गए. उनके पिता वासुदेव ने भी दूसरे ही दिन प्राण त्याग दिए.


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हस्तिनापुर से अर्जुन ने आकर श्रीकृष्ण का श्राद्ध किया. रुक्मणी, हेमवती आदि कृष्ण की पत्नियां सती हो गईं. सत्यभामा और दूसरी पत्नियां वन में तपस्या करने चली गईं. यानी ऐसा कहा जा सकता है कि कृष्ण की जीवन-लीला समाप्त होते ही कलियुग आया. वहीं पांडवों के स्वर्ग में प्रस्थान के बाद राजा परीक्षित ने राज-काज अपने हाथों में ले लिया. वे स्वभाव से बेहद दयालु थे. सभी बुराईयों के राजा कलियुग ने उनके इस विनम्र स्वभाव का फायदा उठाते हुए उनसे रहने का स्थान मांगा. पहले तो राजा ने मना कर दिया.


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लेकिन कलियुग के रोने-बिलकने पर राजा परीक्षित ने उसे रहने के लिए स्थान दे दिया. उन्होंने कहा ‘तुम सिर्फ उन लोगों के मन में निवास कर सकते हो जो क्रोध,लोभ और काम-वासना के अधीन रहते हैं’ कलियुग ने बड़ी चालाकी से हां भर दी. इसके बाद तो कलियुग ने बहला-फुसलाकर सभी के मन में स्थान ले लिया. कालसर्प दोष के कारण राजा परीक्षित की मौत के बाद तो कलियुग पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं रहा. और बिना किसी तय समय सीमा के कलियुग युगों-युगों से यहीं निवास करने लगा…Next

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