कभी-कभी हम महाभारत या रामायण जैसे महापुराणों को पढ़कर सोचते हैं कि आखिर इन राक्षसों ने अपने पूर्व जन्मों में ऐसे कौन से कर्म किए थे जो इन्हें इतनी भंयकर मौत मिली. क्या इनके कर्म पिछले जन्म के अनुसार से निर्धारित किए गए थे या मानवता को कोई सन्देश देने के लिए ये भगवान की ही लीला थी. पुराणों में और हिन्दू धर्म में काफी कहानियां ऐसी मिलती हैं जो हमारे ऐसे ही कई सवालों के जवाब के रूप में समझी जा सकती हैं. इन सभी कहानियों की सत्यता के बारे में तो कई तरह के विचार हो सकते हैं लेकिन रोचकता से भरी ये कहानियां हम में से अधिकतर लोगों को अपनी ओर आकर्षित जरूर करती हैं.
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इनमें से ऐसी ही कहानी जुड़ी है भगवान विष्णु के द्वारा हर जन्म में मारे जाने वाले दो भाइयों विजया और जया के बारे में. इन दोनों भाइयों के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये दोनों कभी हिरण्यकश्यपु हिरण्याक्ष, रावण, कुंभकर्ण शिशुपाल और दंतवकारा नाम से अलग-अलग युगों में जन्म लेकर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के द्वारा नष्ट हो चुके हैं. पुराणों में लिखी कथा अनुसार विजया और जया भगवान विष्णु के वैकुण्ठ लोक में दरबान हुआ करते थे. एक दिन ब्रह्मा के चार कुमार भगवान विष्णु से मिलने के लिए वैकुण्ठ लोक में आए लेकिन अपने तपोबल से उनकी उम्र अपनी वास्तविक उम्र की तुलना में बेहद कम लग रही थी. वे बालक प्रतीत हो रहे थे. उनको देखकर दोनों दरबान भाइयों ने उन्हें बालक समझकर उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोक दिया. इस बात पर चारों कुमार क्रोधित हो उठे. विजया और जया ने फिर भी उन्हें भगवान नारायण से मिलने की आज्ञा नहीं दी. इतने में चारों कुमारों ने रूष्ट होकर दोनों भाइयों को श्राप दे दिया. उन्होंने दोनों भाइयों को पृथ्वी लोक में जन्म लेकर कर्मों के चक्र में फंसे रहने का श्राप दे दिया.
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जब यह समाचार भगवान विष्णु तक पहुंचा तो उन्होंने कुमारों को समझाने का भरकस प्रयत्न किया. उन्होंने दोनों दरबान भाइयों की तरफ से क्षमायाचना भी की. कुछ देर बाद जब ब्रह्मा कुमारों का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु से अपने श्राप के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय मांगा. क्योँकि एक बार मुंह से निकले हुए श्राप को वापस नहीं किया जा सकता था. भगवान विष्णु ने समझ-बूझकर श्रापग्रसित भाइयों के सामने दो विकल्प रखे. जिसके अनुसार उन दोनों को धरती में सात बार भगवान विष्णु के भक्त के रूप में जन्म लेना होगा या तीन बार उनके शत्रु के रूप में भू-लोक में जन्म लेना होगा.इन दोनों विकल्पों में से दोनों भाइयों ने बहुत सोच-विचार करके दूसरा विकल्प चुना क्योँकि वे धरती पर साथ जन्मों की लम्बी यात्रा में नहीं रहना चाहते थे. उनकी इच्छा जल्दी से श्राप मुक्त होकर वापस अपने प्रभु के पास वैकुण्ठ लोक लौट जाना चाहते थे.
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उनका पहला जन्म हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष के रूप में हुआ जिनका संहार नरसिम्हा और वराह देव द्वारा किया गया. इसके बाद त्रेता युग में दोनों भाइयों का जन्म एक बार फिर रावण और कुम्भकर्ण के रूप में हुआ जिनकी मुक्ति श्री राम के हाथों हुई. वहीं दृपर युग में शिशुपाल और दंतवकारा बनकर दोनों भाइयों ने श्री कृष्णा के हाथों अपने श्राप से मुक्ति पाई. इन सभी जन्मों में बुराई के साथ ही सही पर दोनों भाई अपने प्रभु विष्णु के करीब थे..Next
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