14वीं शताब्दी में औरंगजेब कट्टर किंतु ताक़तवर मुगल शासक के रूप में विख्यात हो चुका था. अपने संप्रदाय के प्रति वह गहरी आस्था रखता था. अपने इस दृढ़ आस्था के प्रभाव में आकर वह मंदिरों को तहस-नहस करने लगा. वह इस्लाम संप्रदाय का विस्तार करना चाहता था. यह भी सच है कि मुगल काल के अंतिम दिनों में औरंगजेब ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए लगभग समूचे भारत पर अपना शासन कायम कर लिया था.
अपने साम्राज्य के विस्तार के क्रम में उसने हिमाचल के कांगड़ा स्थित ज्वाला मंदिर को नष्ट करने की योजना बनायी. इंटरनेट पर उपलब्ध तथ्यों की मानें तो उससे पहले मुगल शासक अकबर ने भी इस मंदिर को नष्ट करने की कोशिशें की थी.
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अपनी कोशिशों में असफल होने के बाद उन्होंने वहाँ सोने का एक छत्र चढ़ाया जो वहाँ आज भी मौजूद है. इस मंदिर को नष्ट करने के लिये औरंगज़ेब ने अपने सैनिक भेजे. हालांकि, कांगड़ा स्थित इस मंदिर तक पहुँचने के दौरान मधुमक्खियों का एक झुंड उनके पीछे पड़ गया. मधुमक्खियों के काटने से परेशान होकर अपनी जान बचाने के लिये सारे सैनिक वापस औरंगज़ेब के पास पहुँचे और उन्हें अपनी व्यथा सुनायी. सैनिकों की पीड़ा देख औरंगज़ेब ने उस मंदिर को नष्ट करने की योजना को तिलांजलि दे दी.
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मान्यताओं के अनुसार जब सती के शरीर को टुकड़ों में काटा गया तो उनकी जीभ यहाँ गिर पड़ी थी. इस मंदिर के साथ एक पुस्तकालय भी संबद्ध है जिसमें हिंदू ग्रंथ रखे गये हैं. इस मंदिर के बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने इन ग्रंथों का संस्कृत से पारसी में अनुवाद करवाया था.Next…..
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