Menu
blogid : 19157 postid : 811261

अगर रावण कुबेर की बात मान जाता तो शायद उसे यह पदवी न मिलती

कैसे पड़ा दशानन का नाम रावण
विश्रवा की सलाह पर कुबेर ने लंका त्याग दिया और हिमाचल चले गए. इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ और लंका का राजा बन बैठा. उसने साधुजनों पर अनेक अत्याचार करने शुरू कर दिए. इसकी ख़बर जब कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए अपना एक दूत लंका भेजा. दूत ने दशानन को प्रणाम करते हुए कुबेर का संदेश सुनाया और यह भी कहा कि भ्राता ने आपको सत्य पथ पर चलने को कहा है. इससे दशानन बौखला गया और उसने दूत को बंदी बना लेने का आदेश दे दिया. दूत के बंदी बनते ही रावण ने अपनी खड्ग निकाली और दूत के शरीर के दो टुकड़े कर दिए. इसके तुरंत बाद वो अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा. वहाँ पहुँचकर दशानन और उसके सेनापतियों ने कुबेर की सेना को गाजर-मूली की तरह काट दिया. दशानन ने अपने भाई कुबेर पर गदा से प्रहार कर उसे घायल कर दिया लेकिन उसके सेनापतियों ने किसी तरह उसे नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक कर दिया.
अब दशानन का उत्साह चरम पर पहुँच चुका था. इसी उत्साह में वह शारवन की तरफ चल पड़ा. एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई. दशानन को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि चालक की इच्छानुसार चलने वाले विमान की गति अचानक से स्वयं ही कैसे धीमी हो गई. तभी दशानन की दृष्टि सामने की ओर गई जहाँ उसे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर खड़े मिले. नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि,’यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ.’ इस पर दशानन ने दंभ से कहा कि कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है?  मैं उस पर्वत का नामो-निशान मिटा दूँगा जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है.’ इतना कहते ही उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा. अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हो गए.  भगवान शंकर ने वहीं बैठे-बैठे पाँव के अंगूठे से पर्वत को दबाया तो मजबूत खंभे जैसी दशानन की बाँहें पर्वत के नीचे दब गई. क्रोध और दर्द से दशानन राव(आर्तनाद) कर उठा जिससे तीनों लोक काँप उठे. सभी को ऐसा लगा जैसे प्रलयकाल निकट आ गया है. तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव के स्तुति की सलाह दी. दशानन ने बिना देरी किये सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान शुरू कर दिया. अंत में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दशानन को माफ करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त कर दिया. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसका नाम रावण रख दिया. तब से दशानन को रावण के नाम से जाना जाने लगा. शिव की स्तुति में रचा गया वह स्त्रोत आज भी ‘रावण-स्त्रोत’ के नाम से लोकप्रिय हुआ.

विश्रवा की सलाह पर कुबेर ने लंका त्याग दिया और हिमाचल चले गए. इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ और लंका का राजा बन बैठा. उसने साधुजनों पर अनेक अत्याचार करने शुरू कर दिए. इसकी ख़बर जब कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए अपना एक दूत लंका भेजा. दूत ने दशानन को प्रणाम करते हुए कुबेर का संदेश सुनाया और यह भी कहा कि भ्राता ने आपको सत्य पथ पर चलने को कहा है. इससे दशानन बौखला गया और उसने दूत को बंदी बना लेने का आदेश दे दिया. दूत के बंदी बनते ही रावण ने अपनी खड्ग निकाली और दूत के शरीर के दो टुकड़े कर दिए.



ravana


इसके तुरंत बाद वो अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा. वहाँ पहुँचकर दशानन और उसके सेनापतियों ने कुबेर की सेना को गाजर-मूली की तरह काट दिया. दशानन ने अपने भाई कुबेर पर गदा से प्रहार कर उसे घायल कर दिया लेकिन उसके सेनापतियों ने किसी तरह उसे नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक कर दिया.


Read: रावण के ससुर ने युधिष्ठिर को ऐसा क्या दिया जिससे दुर्योधन पांडवों से ईर्षा करने लगे


अब दशानन का उत्साह चरम पर पहुँच चुका था. इसी उत्साह में वह शारवन की तरफ चल पड़ा. एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई. दशानन को यह समझ ही नहीं आ रहा था कि चालक की इच्छानुसार चलने वाले विमान की गति अचानक से स्वयं ही कैसे धीमी हो गई. तभी दशानन की दृष्टि सामने की ओर गई जहाँ उसे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर खड़े मिले. नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि,’यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ.’



ravan



इस पर दशानन ने दंभ से कहा कि कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है?  मैं उस पर्वत का नामो-निशान मिटा दूँगा जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है.’ इतना कहते ही उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा. अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हो गए.  भगवान शंकर ने वहीं बैठे-बैठे पाँव के अंगूठे से पर्वत को दबाया तो मजबूत खंभे जैसी दशानन की बाँहें पर्वत के नीचे दब गई. क्रोध और दर्द से दशानन राव(आर्तनाद) कर उठा जिससे तीनों लोक काँप उठे. सभी को ऐसा लगा जैसे प्रलयकाल निकट आ गया है.


Read: रावण से बदला लेना चाहती थी सूर्पणखा इसलिए कटवा ली लक्ष्मण से अपनी नाक


तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव के स्तुति की सलाह दी. दशानन ने बिना देरी किये सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान शुरू कर दिया. अंत में भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दशानन को माफ करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त कर दिया. भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसका नाम रावण रख दिया. तब से दशानन को रावण के नाम से जाना जाने लगा. शिव की स्तुति में रचा गया वह स्त्रोत आज भी ‘रावण-स्त्रोत’ के नाम से लोकप्रिय हुआ. Next….



Read more:

जब रावण को घोड़ों के बीच बांधा गया !!

शिव को ब्रह्मा का नाम क्यों चाहिए था ? जानिए अद्भुत अध्यात्मिक सच्चाई

ऐसा क्या हुआ था कि विष्णु को अपना नेत्र ही भगवान शिव को अर्पित करना पड़ा? पढ़िए पुराणों का एक रहस्यमय आख्यान



Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh