शनिदेव की अनेक कथाएँ हमारे पुराणों में हैं. शनिग्रह को न्याय का देवता कहा जाता है, क्योंकि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करते हैं और सभी प्राणियों के साथ न्याय करते हैं, इनके संबंध में कई भ्रान्तियां सुनने को मिलती हैं जैसे- शनिदेव ही जीवन में अशुभ और दुख का कारक हैं. वास्तविकता तो यह है कि शनिदेव उतने अशुभ नहीं होते, जितना लोग उन्हें मानते हैं. कहा जाता है कि शनिदेव अपने भक्तों पर शीघ्र ही नाराज और प्रसन्न हो जाते है. मान्यताएं है कि शनिदेव को यदि विधिवत पूजा जाएं, तो वे अपने भक्तों को कभी दुखी नहीं रखते हैं.
यदि कोई व्यक्ति समाज में किसी का अहित नहीं करता तो उसे शनिदेव से डरने की कोई जरुरत नहीं है. निर्दोष व्यक्ति को शनि कुछ नहीं करते, परन्तु दुष्ट व्यक्तियों को शनिदेव के कोप का भाजक बनाना पड़ता है. कहा जाता कि शनिदेव की पूजा में तिल तथा तेल का बहुत महत्त्व है.
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शनिदेव के तीन चमत्कारिक सिद्ध पीठ
भारत में शनिदेव के कई मंदिर हैं, परन्तु शनिदेव के चमत्कारिक सिद्ध पीठों में से तीन पीठों को ही मुख्य माना जाता है. मान्यता है कि इन सिद्ध पीठों में जाकर अपने किये गये पापों के लिए क्षमा मांगने और विधिवत पूजा-पाठ करने से शनिदेव की कृपा उनपर बन जाती है. शनिदेव के इन तीन पीठों में से पहला महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ है, दूसरा पीठ मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मन्दिर है और आखरी पीठ उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव के मन्दिर को माना जाता है.
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शनिदेव की पूजा में तिल और तेल क्यों?
काला तिल और तेल से शनिदेव जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं. यदि शनिदेव की पूजा इन वस्तुओं से की जाए तो ऐसी पूजा सफल मानी जाती है. शनिवार का व्रत यूं तो आप वर्ष के किसी भी शनिवार के से दिन शुरू कर सकते हैं, परंतु मान्यता है कि श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारम्भ करना अति मंगलकारी होता है. इस व्रत का पालन करने वाले को शनिवार के दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके शनिदेव की प्रतिमा का विधि सहित पूजन करना चाहिए. शनि भक्तों को इस दिन शनि मंदिर में जाकर शनि देव को नीले लाजवन्ती का फूल, तिल, तेल, गुड़ अर्पण करना चाहिए.Next…
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