ऐसा ही एक मंदिर है जिसमें उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली के साथ बेसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है.
शिल्प कौशल का बेहतरीन उदाहरण है बिहार के हाजीपुर (पटना) का नेपाली मंदिर जिसे ‘बिहार प्रदेश का खजुराहो’ भी कहा जाता है. यह देवालय पटना-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गांधी सेतु पुल पार कर जडुआ मोड़ से छह किलोमीटर की दूरी पर है. नेपाली मंदिर के एक ओर नारायणी गंडक के किनारे का नजारा मनभावन लगता है, वही दूसरी तरफ महाश्मशान में चिता हमेशा जलती रहती है.
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राजा रंजीत सिंह ने इस मंदिर का निर्माण प्रजा में काम विद्या की शिक्षा के प्रसार के लिए करवाया था. यहां काम विद्या के सोलह विशेष आसनों का उत्कृष्ट प्रदर्शन दर्शनीय है.
नेपाली मंदिर को देखने के बाद स्वतः आपको खुजराहो के शिल्प और कोणार्क की कलाकृतियों याद आ जाएगीं. यहाँ आकर देखने के बाद ऐसा लगता है कि इस मंदिर का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य की संपूर्ति हेतु कराया गया. शोध विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार चौधरी का मानना है कि बिहार प्रदेश के उत्तर मुगलकालीन देवालय में नेपाली मंदिर अपनी बनावट व युग्म मूर्तियों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है.
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यहाँ सालों भर देशी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. मान्यता है कि यहाँ आने से श्रद्धालुओं के मन में कोई विकार नहीं रह जाता है एवं चित शांत और प्रसन्न हो जाता है. यहाँ प्रत्येक वर्ष पूरे श्रावण व कार्तिक माह में भक्तों के आगमन से विशाल मेला देखने को मिलता है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बिहार का यह मंदिर अपने अनूठी बनावट व शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है.Next…
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