सांसारिक कर्मों के अलावा प्रार्थना मनुष्यों के जीवन की दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा मानी जाती रही है. कई रूपों वाली प्रार्थना से आशय उस महाशक्ति की स्तुति से है जिसकी शक्ति के कारण प्रलय और सृजन सम्भव होता है. मौलिक होने के कारण प्राणियों का सृजन उस महाशक्ति की अद्भुत कृत्यों में से एक मानी जाती है.
प्रकृति रूपी इस महाशक्ति की स्तुति के कई तरीक़ें हैं, जो मानवों द्वारा ईज़ाद किये गये हैं और कालांतर में जिसमें संशोधन होता रहा है. हालांकि, इस स्तुति का सर्वमान्य ध्येय आत्मा से एकाकार होना है. समय के साथ पाखंड और कुरीतियों ने प्रार्थना के तरीक़ों पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया है जिस कारण धर्म पर लोगों की आस्था में क्षरण हुआ है. इन तरीक़ों में द्रव्य से महाशक्ति को प्रभावित करने की कोशिश प्रमुख हैं.
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प्रार्थना के समय मनुष्यों की मुद्रा और भाव अहम होते हैं. नि:स्वार्थ भाव से की गयी प्रार्थना कामना रहित होती है. ग्रंथों में कई ऐसी कहानियों का उल्लेख है जिससे स्तुति के दौरान होने वाले मनोभाव का पता चलता है. ऐसी ही कहानियों में से एक कहानी जिससे प्रार्थना के समय मनुष्यों के मन के भाव का पता चलता है –
बालक ध्रुव के पिता की दो पत्नियाँ थी. उसके पिता दोनों पत्नियों में सुंदर अपनी दूसरी पत्नी से अत्यधिक स्नेह करते थे. एक बार दरबार में बालक ध्रुव अपने राजा पिता की गोद में बैठ गया. राजा की दूसरी पत्नी से यह देखा न गया और उसने ध्रुव को अपने पति की गोद से हटाते हुए उसे भगवान की गोद में बैठने को कहा. नन्हें अबोध बालक ने अपनी माँ से ईश्वर से मिलन का उपाय पूछा. उसकी माँ ने बालक के प्रश्न का उत्तर देते हे कहा कि, ‘ईश्वर-प्राप्ति के लिये अरण्य में घोर तपस्या करनी पड़ती है.’
बालक ध्रुव ने ईश्वर की गोद में बैठने का निश्चय कर लिया. माँ के मनाने के बावजूद वह अरण्य में तपस्या करने निकल पड़ा. अरण्य पहुँच बालक ध्रुव बिना किसी प्रसाद और अन्य सामग्री के एक वृक्ष के नीचे बैठ ईश्वर का आह्वान करने लगा. नन्हें से बालक की निस्वार्थ भाव से पुकार सुन बैकुंठ-पति विष्णु का हृदय पिघल गया. उन्होंने ध्रुव को दर्शन दिये और उससे इच्छित वर माँगने को कहा. ध्रुव ने उनके गोद में बैठने की इच्छा जाहिर कर दी. नारायण ने मुस्कुराते हुए तत्काल ही उसकी यह इच्छा पूरी कर दी. कालांतर में ध्रुव को पिता का राज्य प्राप्त हुआ.
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मन की शांति और एकाग्रता के लिये प्रार्थना आवश्यक है. इससे चित्त प्रसन्न रहता है, लेकिन यह तभी सम्भव है जब प्रार्थना कामरहित मन से की गयी हो और जब प्रार्थना के ऊपर सांसारिक इच्छा हावी न हों.Next….
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