कुल्लू घाटी के पूर्वोत्तर में बसा मलाणा एक प्राचीन गाँव है. पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हुए बिना इस गाँव के निवासी अपनी संस्कृति व परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाये रखने में अत्यधिक सफल रहे हैं. इस गाँव का इतिहास जमलू ऋषि के बिना अधूरी है. इस गाँव में जमलू ऋषि को देवता की तरह पूजा जाता है. उनके बारे में मान्यता है कि वो भगवान विष्णु के छठे अवतार व परशुराम के पिता थे. पार्वती घटी के किनारे बसे मलाणा नाला घाटी में बसा इस गाँव के एक मंदिर में किसी चीज़ को छूने पर जुर्माने के रूप में एक निश्चति राशि का भुगतान करना पड़ता है. पत्थर और लकड़ी से निर्मित इस मंदिर में ऋषि जमलू की छोटी किंतु स्वर्ण जड़ित प्रतिमा है. जमलू ऋषि को ही सतयुग का जमदग्नि माना जाता है.
उस गाँव की सामाजिक संरचना के अनुसार जमलू देवता एक ग्राम परिषद के जरिये वहाँ की शासन व्यवस्था पर नियंत्रण बनाये रखते हैं. मलाणा गाँव में यह परम्परा है कि पकी फसल की कटाई के बाद उसका एक हिस्सा ग्रामवासी अपने जमलू देवता को चढ़ाते हैं. चढ़ावा रूपी यह हिस्सा जमलू देवता के इस मंदिर में रख दी जाती है. विभिन्न धार्मिक उत्सवों व रस्मों में जमा किये गये अन्न का इस्तेमाल किया जाता है.
इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि ऋषि जमलू ध्यानमग्न होने के लिये किसी एकांत स्थान की खोज कर रहे थे. लम्बे भ्रमण के बाद वो मलाणा पहुँचे और उन्हें अपनी ध्येय पूर्ति के लिये यह स्थान उपयुक्त लगा. लेकिन इस बारे में एक रोचक किंतु संशयात्मक तथ्य यह है कि समूचे गाँव में जमलू देवता का एक भी चित्र नहीं है.
ग्रामवासियों ने जमलू देवता के खांडा को ही ईश्वर का प्रतीक मान उनकी पूजा करते हैं. यह माना जाता है कि किसी विवादास्पद मामले पर जमलू देवता अपने मुख्य शिष्य के जरिये वहाँ के लोगों से संवाद करते हैं. जमलू देवता का निर्णय वहाँ अंतिम माना जाता है.Next….
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