मृत्यु जीवन का सच है. एक ऐसा सच जिसे अब तक झुठलाया नहीं जा सका है. गरूड़ पुराण के अनुसार कर्म बँधन में फँसे जीवात्माओं को मृत्युलोक में किये गये अपने कर्मों का हिसाब मृत्यु के बाद यमलोक में देना पड़ता है. वहाँ उनके कर्मों का हिसाब होता है और तदानुसार उसे स्वर्ग और नर्क़ की प्राप्ति होती है.
मान्यता यह भी है कि मनुष्यों के कर्मों का लेखा-जोखा वहाँ पहले से लिख सहेज कर रखी जाती है. जीवात्माओं के लेखा-जोखा को लिखकर सहेजने वाले देवता को चित्रगुप्त नाम दिया गया है. कहा जाता है कि भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं.
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इस नाम के पीछे पुराणों में कई कथाओं का उल्लेख है. एक कथा के अनुसार महाप्रलय के पश्चात सृष्टि की पुर्न रचना निर्धारित थी. उस समय भगवान ब्रह्मा तपस्या में लीन थे. हजारों वर्षों की तपस्या के दौरान उनके स्मृति पटल पर एक चित्र अंकित हुआ और गुप्त हो गया. परमपिता ब्रह्मा के मुख से निकल पड़ा चित्रगुप्त. इसका आशय मन में स्थित लेकिन गुप्त रहने वाले चित्र से है.
जब उन्होंने आँखें खोली तो उनके सामने दिव्यपुरूष खड़े थे. उन्होंने उसे चित्रगुप्त नाम दिया. परमपिता ब्रह्मा के कथनानुसार देव चित्रगुप्त ने महाकाल नगरी में जाकर तपस्या की. उनकी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें जीवात्माओं का लेखा-जोखा सहेज कर रखने की शक्ति प्राप्त हुई.
चित्रगुप्त देव के प्रतीक चिन्ह
यमराज के सहयोगी चित्रगुप्त अपने हाथों में पुस्तक और दवात धारण किये रहते हैं.
क्यों होती है इनकी पूजा?
इन्हें निपुण लेखक माना जाता है. इनकी लेखनी से ही जीवात्माओं को मृत्युलोक पर किये गये उनके कर्मों के अनुसार न्याय प्राप्त होता है.
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कब की जाती है इनकी पूजा?
भगवान चित्रगुप्त का पूजन विशिष्ट तौर पर कार्तिक शुक्ल द्वितीया व चैत्र मास में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की द्वितीया को किया जाता है. भारतीयों के प्रसिद्ध पर्व दीपावली के पश्चात पड़ने वाली द्वितीया तिथि में मनाये जाने वाली भैयादूज में भी इनकी पूजा का विधान है.Next…
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