गणपति देव के कई रूप हैं और देश में भगवान गणेश के अनेक मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं चित्तूर का कनिपक्कम गणपति मंदिर भी एक ऐसा ही मंदिर है. यह मंदिर कुछ कारणों से अनूठी है. आस्था और चमत्कार की कई कहानियां स्वयं में समेटे कनिपक्कम विनायक का ये मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है.
इसके अनूठेपन का कारण इस बृहद मंदिर का नदी के मध्य स्थित होना है. लेकिन यह मंदिर एक और कारण से अन्य मंदिरों की तुलना में विशिष्ट है. माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित गणपति की मूर्ति का आकार लगातार बढ़ रहा है. मान्यता यह भी है कि यहाँ आने वाले भक्तों के पाप को विघ्नहर्ता दूर कर देते हैं.
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मंदिर के पीछे है रोचक कहानी
इस मंदिर के निर्माण की कहानी बेहद रोचक है. किंवदंतियों के अनुसार तीन भाई थे जिनमें से एक गूंगा, दूसरा बहरा और तीसरा अंधा था. तीनों ने मिलकर अपने जीवन व्यापन के लिए जमीन का एक छोटा टुकड़ा खरीदा. खेती के लिए पानी की जरुरत को पूरा करने के लिये तीनों ने उस कुँए को खोदना शुरू किया. सूखने के कारण चुका वहाँ अत्यधिक खुदाई करनी पड़ी जिसके बाद भी बहुत कम पानी निकली.
थोड़ी और खुदाई करने पर एक पत्थर दिखाई दिया. लेकिन उसे हटाते ही वहाँ खून की धारा फूट पड़ी. देखते ही देखते कुंए का पानी लाल हो गया. कुछ ही क्षणों में एक चमत्कार हुआ. तीनों भाई स्वयं ठीक हो गये. जब ये ख़बर उस ग्रामीणों को पता चली तो वे सभी यह चमत्कार देखने के लिए एकत्रित हो गये. तभी समस्त गामीणों को वहाँ गणेशजी की मूर्ति दिखाई दी. आपसी विचार-विमर्श के बाद उसे वहीं पानी के मध्य स्थापित किया गया. इसकी स्थापना 11वीं सदी में चोल राजा कुलोतुंग चोल प्रथम ने की थी.
मान्यतायें हैं और भी
माना जाता है कि मंदिर में मौजूद गणेश की मूर्ति का आकार प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. इसके प्रमाण वो उनके पेट और घुटने को मान रहे हैं जिसका आकार बड़ा होता जा रहा है. इसी कारण भगवान गणेश को एक भक्त श्री लक्ष्माम्मा द्वारा भेंट की गयी कवच उस प्रतिमा को पहनायी नहीं जा सकी है. Next….
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