अपने जीवन में हम परम्परा के पालन के तौर पर ऐसे कई कार्य करते हैं जिसके करने के महत्तव के विषय में हमें जानकारी थोड़ी अथवा बिल्कुल नहीं होती है. घर से सुबह निकलते समय लोग माथे पर तिलक लगा मंदिर में माथा टेकते हैं लेकिन उनमें से कई तिलक लगाने का महत्तव व उसकी उपयोगिता नहीं समझते हैं.
केवल हिंदू शास्त्र ही नहीं बल्कि ऐसे कई वैज्ञानिक पहलू हैं जिनस माथे पर तिलक लगाने का महत्तव समझा जा सकता है. तिलक लगाने की अपनी जरूरत है जो प्रथा बनकर पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. यह हमारे मानव शरीर को कई प्रकार से लाभ पहुँचाता है. इसलिए विज्ञान भी माथे पर तिलक लगाने की सलाह देता है. तो आईये आप को बताते हैं तिलक लगाने के आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण:
हिन्दू धर्म में तिलक लगाने की विशिष्ट मान्यता है. हिन्दू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य के आरंभ से पहले तिलक या टीका लगाने का विधान है. ऐसा करने से कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होने के अवसर बढ़ जाने की मान्यता है. यह भी माना जाता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा रहता है.
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विभिन्न पदार्थों से बनता है तिलक
कहने को तिलक केवल एक प्रकार का रंग है जिसे मस्तिष्क के अग्रबाग के केंद्र में लगाया जाता है. लेकिन यदि मान्यताओं के दायरे से देखें तो तिलक लगाना एक अहम रीत है. इसलिए विभिन्न कार्यों में विभिन्न पदार्थों की मदद से तिलक बनायी जाती है. इसे बनाने के लिए हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि का प्रयोग किया जा सकता है.
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आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक पहलू
केवल रीति-रिवाज नहीं, भावनाओं से भी भरपूर है तिलक लगाने की प्रथा. शादी हो या नामकरण अथवा किसी भी प्रकार की हवन या पूजा, घर-परिवार के लोग पूरे दिल से तिलक लगवाते हैं. मान्यता है कि स्नान के ठीक पश्चात यदि तिलक लगाया जाए तो काफी शुभ माना जाता है. भारत की पौराणिक नगरी कहलाने वाली काशी के संगम तट पर लोग स्नान करने के बाद संतों से तिलक जरूर करवाते हैं.
कहते हैं कि संगम तट पर गंगा स्नान के बाद तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. माथे पर तिलक लगाने के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक महत्व है. माना जाता है कि हमारे मानवीय शरीर में सात सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं. ये केंद्र अपार शक्ति के भंडार हैं जिन्हें चक्र भी कहा जाता है. मस्तिष्क के बीच में जहां तिलक लगाया जाता है उस स्थान को आज्ञाचक्र कहते हैं. यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यहीं पर हमारे शरीर की प्रमुख तीन नाड़ियाँ- इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं. इसलिए इसे त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है.
हमारे माथे के बीच का यह स्थान ‘गुरु स्थान’ भी कहलाता है. यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है. इस स्थान की महत्ता को देखते हुए ही यहां तिलक लगाया जाता है ताकि शरीर को लाभ पहुंच सके. इस स्थान पर तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं और साथ देखने वाले पर सात्विक प्रभाव भी पड़ता है. यही कारण है कि विज्ञान भी तिलक लगाने का हितैषी है. मन के शांत होने से मानव शरीर में रक्त प्रवाह सुचारू होती है, जिससे शरीर को अत्यधिक लाभ पहुँचता है. Next….
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