Menu
blogid : 19157 postid : 849586

राम ने नहीं उनके इस अनुज ने मारा था रावण को!

सभी जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण कथा के अनुसार विष्णु के अवतार श्री राम ने अपनी पत्नी सीता को वापस लाने के लिए युद्ध द्वारा लंका के राजा रावण को हराया था, उसका अंत किया था. लेकिन इस लोकप्रिय कथा के अलावा एक और कथा राजस्थान की लोक कथाओं में प्रचलित है, जिसमें रावण को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने नहीं, बल्कि उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने  मारा था.



ram killing ravana



यह बात काफी हैरान करने वाली है लेकिन राजस्थानी कथाओं की मानें तो सच में वह लक्ष्मण ही थे जिन्होंने रावण के प्राण लिए थे. रामायण कथा के अनुसार रावण की जान उसकी नाभि में रखे गए अमृत के कलश में थी लेकिन राजस्थानी कथाओं में रावण की जान सूर्य के रथ के एक घोड़े की नासिका में छिपी थी, जिसे लक्ष्मण ने मुक्त कर रावण का अंत किया था.


इस राजस्थानी कथा के अनुसार लक्ष्मण ब्रह्मचारी हैं. दूसरी ओर रावण को यह वरदान मिला है कि केवल ब्रह्मचारी व्यक्ति ही घोड़े की नासिका में कैद उसकी जान को पहचान सकता है. इसलिए वह लक्ष्मण ही थे जिन्होंने उस नासिका में छिपी रावण की जान को पहचान उसका अंत किया.


Read: रामायण ही न होता अगर वह न होती, फिर भी उसका जिक्र रामायण में नहीं है. क्यों? हैरत में डालने वाला राम से जुड़ा एक सच.



कहा जाता है राजस्थान का जैन समुदाय इस कथा पर विश्वास करता है. उनके अनुसार लक्ष्मण ने ही रावण का वध किया था. इस समुदाय के लोग श्री राम को अहिंसक व्यक्ति के तौर पर पूजते हैं. इस कथा का वर्णन राजस्थान के गवैये, जिन्हें भोपो कहा जाता है, वह अपनी गायिकी के जरिये काफी अच्छे से करते हैं. यह गवैये ‘पबूजी’ नाम के चरित्र के बारे में भी बताते हैं जिनकी कहानी राम, सीता और लक्ष्मण के पूर्वजन्म से जुड़ी है. पबूजी के चरित्र से बनाई यह कहानी आज से 600 से भी ज्यादा वर्ष पुरानी है.




rajasthani




इस कथा की माने तो पूर्वजन्म में लंका के राजा रावण जिन्धर्व खिंची के रूप में जन्मे थे. दूसरी ओर शूर्पणखा राजकुमारी फूलवती थी और लक्ष्मण ही पबूजी के रूप में जन्में थे. पबूजी के पिता दढल राठौड़ की एक पत्नी थी जिससे उन्हें दो संतानें हुई- बुरो और प्रेमा. यह दोनों पबूजी के सौतेले भाई-बहन थे.



कहते हैं दढल को एक खूबसूरत कन्या से प्रेम हो गया जिसके बाद उन्होंने उससे विवाह करने का प्रस्ताव रखा लेकिन आगे से कन्या ने एक शर्त पर विवाह करने के लिए हां कहा. शर्त यह थी कि दढल ताउम्र उस कन्या से कभी नहीं पूछेगा कि वह दिन ढलने के बाद रात में कहां जाती है, नहीं तो वह उसे छोड़कर हमेशा के लिए चली जाएगी. शर्त सुनते ही दढल मान गए और दोनों की शादी हो गई.


Read: अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब करने वाले शनि देव ने हनुमान को भी दिया था एक वरदान


इसे कन्या से दढल को दो संतानें- पबूजी और सोना प्राप्त हुए. एक रात जाने अनजाने में दढल ने अपनी पत्नी का जंगल तक पीछा किया. वह जैसे ही जंगल में पहुंचा तो उसने देखा कि वह एक शेरनी के रूप में अपने बेटे को दूध पिला रही थी. इस सब में दढल भूल गया कि उसने दिये हुए वचन को तोड़ा है जिसका परिणाम यह हुआ कि वह कन्या उसे छोड़कर हमेशा के लिए चली गई लेकिन जाते-जाते वह अपने पुत्र पबूजी को एक चमत्कारी घोड़ी, कलमी के रूप में मिलने का वादा कर के गई.



laxman killed ravana



कुछ वर्षों बाद पबूजी के पिता दढल की मौत हो गई. अब सारा राज्य बड़े और सौतेले भाई बुरो के हाथ में आ गया. सत्ता के घमंड में आकर बुरो ने पबूजी को महल से बेदखल कर दिया. इस कहाने में देवी देवल नाम का एक पात्र भी था जिन्होंने पबूजी को एक चमत्कारी घोड़ी दी थी. यही घोड़ी पबूजी की मां का पूर्वजन्म था.


देवल ने उन्हें इस शर्त पर घोड़ी दी कि वह आगे चलकर उनकी एक गाय की रक्षा करेंगे और पबूजी मान गए. कहते हैं पबूजी को चमत्कारी घोड़ी मिलने की वजह से बुरो और उनके बीच संबंध खराब हो गए. इस कहानी में रावण का किरदार निभाने वाले जिन्धर्व खिंची के पिता के साथ पबूजी का युद्ध हुआ था, जिसमें उसने उनका वध कर दिया. बाद में दोनों राज्यों मे शांति बनाने के लिए बुरो ने अपनी बहन प्रेमा का विवाह जिन्धर्व खिंची से कर दिया.


Read: ऐसी दैवीय शक्तियां जिन्हें विज्ञान भी नहीं समझ पाया!!


कहने को तो दोनों के बीच के रिश्ता कायम हो गया था लेकिन जिन्धर्व की नजर हमेशा बुरो की संपत्ति और पबूजी की प्रिय गाय पर ही थी, जिनकी रक्षा पबूजी करते थे.




cow





कहते हैं पबूजी की महानता और साहस से आकर्षक होकर सिंध की राजकुमारी फूलवती ने उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा लेकिन पबूजी ने यह कहकर मना कर दिया के वे आजीवन ब्रह्मचारी रहना चाहते हैं. लेकिन अंत में काफी मनाने के बाद पबूजी, फूलवती से विवाह करने के लिए राजी हो गए. दोनों का विवाह सिंध में ही हो रहा था, लेकिन यह विवाह पूरा ना हो सका.


हिन्दू मान्यताओं के अनुसार विवाह के समय स्त्री के तीन और पुरुष के चार फेरे होते हैं. यदि स्त्री अपने फेरे पूरे कर ले तो वह पुरुष की पत्नी बन जाती है लेकिन जब तक पुरुष अपने चार फेरे पूरे ना कर ले वह उसका पति नहीं कहलाता. कुछ ऐसा ही हुआ पबूजी और फूलवती के विवाह में.


Read: रावण से बदला लेना चाहती थी शूर्पनखा इसलिए कटवा ली लक्ष्मण से अपनी नाक



जैसे ही तीन फेरे पूरे होने के बाद चौथा फेरा शुरू हुआ तो देवी देवल प्रकट हो गई. उन्होंने पबूजी को चिल्लाते हुए कहा कि जिन्धर्व खिंची उनकी गाय चुरा कर ले गया है जिसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी पबूजी ने ली थी. वादे के अनुसार पबूजी विवाह बीच में छोड़कर ही गाय लेने चले गए.





seven-vow



गाय को वापस पाने के लिए जिन्धर्व और पबूजी के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में हमेशा की तरह पबूजी जीत गए लेकिन उनकी सौतेली बहन का जिन्धर्व से विवाह होने के कारण उन्होंने उसके प्राण हरण नहीं किये और जाने के लिए कहा. लेकिन जिन्धर्व के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था.


अब उसने पबूजी को छल कपट से मारने का प्रयास किया. उन्हें मारने के लिए जैसे ही जिन्धर्व ने अपनी तलवार निकाली एक चमत्कार हुआ, जिसके बाद पबूजी अपनी घोड़ी को लेकर राम के पास स्वर्ग चले गए. आगे चलकर रूपनाथ, बुरो के पुत्र, ने जिन्धर्व का वध किया... Next….


Read more:

सभी ग्रह भयभीत होते हैं हनुमान से…जानिए पवनपुत्र की महिमा से जुड़े कुछ राज

कुरूप दिखने वाली मंथरा किसी समय बुद्धिमान और अतिसुंदर राजकुमारी थी

क्या था वो श्राप जिसकी वजह से सीता की अनुमति के बिना उनका स्पर्श नहीं कर पाया रावण?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh