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क्यों महिलाओं के बारे में ऐसा सोचते थे आचर्य चाणक्य

आचार्य विष्णुगुप्त, कौटिल्य या चाणक्य, भारतीय इतिहास में ये तीनों नाम एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने अपने राजनीति के व्यवहारिक ज्ञान से न सिर्फ धनानंद का सत्ता पलटकर चंद्रगुप्त को मगध की सत्ता पर आशीन किया बल्कि चंद्रगुप्त को भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनवाकर पहली बार पूरे भारतीय महाद्वीप को एक राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत लाया था. आचर्य चाणक्य की रचना अर्थशास्त्र आज भी राजनीतिक पंडितों के लिए बुनियादी संदर्भ ग्रंथ बनी हुई है पर चाणक्य की महिलाओं के लिए कही गई कुछ बातें ऐसी हैं जो वर्तमान समय में समाज और परिस्थिति को देखते हुए अखरती है. आईए जानते हैं कि आचर्य चाणक्य महिलाओं की प्रकृति समझने में कहां चूक गए.


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आचर्य चाणक्य द्वारा कही यह कुछ ऐसी बातें हैं जो यह साबित करती है कि महिलाओं के प्रति वह पूर्वाग्रह से पीड़ित थे. चाण्क्य कहते हैं कि एक व्यक्ति को कभी नदी, शाही परिवार, सींग वाले जानवर, हथियारों से लैस इंसान और महिलाओं पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये कभी भी धोखा  दे सकते हैं. चाणक्य के अनुसार महिलाएं कभी स्थिर नहीं रह सकतीं, उनका मस्तिष्क बहुत ही जल्दी बदलता है इसलिए उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता.


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आचर्य चाणक्य का महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह यहीं समाप्त नहीं होता उनका यहां तक कहना है कि झूठ बोलने का सारा जिम्मा केवल महिलाओं के ही पास है. ये बात अलग है कि दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो जिसने झूठ न बोला हो. केवल झूठ बोलना ही नहीं चाणक्य के अनुसार बेवकूफी करना, छल-कपट का सहारा लेना, चालाक होना, क्रूर रहना आदि सबकुछ महिलाओं के व्यक्तित्व के प्राकृतिक दोष हैं.

चाणक्य के अनुसार पुरूष महिलाओं से अगर कुछ सीख सकता है तो वह है धोखा देना. उसी प्रकार नम्रता राजकुमारों का आचरण ऐसा होना चाहिए की उनसे नम्रता सीखी जा सके, वहीं संवाद की कला पंडितों से और  झूठ बोलना जुआरियों से सीखी जा सकती है.


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महिलाओं की प्रकृति के बारे में चाणक्य की राय है कि उनमें पुरुषों की अपेक्षा दो गुणा ज्यादा भूख, चार गुणा ज्यादा शर्म, छ: गुणा ज्यादा साहस और काम वासना आठ गुणा ज्यादा होती है. चाण्क्य के इन कथनो से यह प्रतीत होता है कि वे महिलाओं को एक वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे. उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने अच्छे समय के लिए धन और स्त्री को बचाकर रखना चाहिए और बुरे समय में सबसे पहले इनका त्याग करना चाहिए.


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हो सकता है तत्कालीन परिस्थितियां और आचर्य चाणक्य का निजी अनुभव उन्हें महिलाओं के प्रति इस तरह की राय प्रकट करने के लिए मजबूर किया हो. लेकिन आज महिलाओं ने अपने आप को न सिर्फ हर क्षेत्र में साबित किया है बल्कि त्याग और मानावता के अनुपम उदाहरण भी पेश किए हैं जिन्हें देख शायद आज चाणक्य भी होते तो अपना मत बदलने पर मजबूर हो जाते. Next…


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