Menu
blogid : 19157 postid : 835813

दुर्योधन की इस भूल के कारण ही बदल गया भारत का इतिहास

भारत जैसे विभिन्न सांस्कृतिक एवं भाषाओं वाले देश में लोग अनेक देवी-देवताओं, मूर्तियों और यहां तक की ग्रंथों की पूजा करते हैं. हिन्दू धर्म की धार्मिक किताब भागवत गीता, इस्लाम की कुरान, सिखों की गुरु ग्रंथ साहिब तथा ईसाईयों की बाइबल को लोगों ने भावनात्मक पूर्ण तरीके से पूजनीय माना है. आज भारत में लोगों के बीच भले ही परमात्मा रुपी रूह नहीं है लेकिन इन महान ग्रंथों ने मनुष्य की अंतर-आत्मा को बांधकर सही राह पर चलना सिखाया है. इन्हीं में से एक है भागवत गीता, जिसे हिन्दू धर्म में भागवत पुराण, श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं.


bhagavada gita


लेकिन इस महान ग्रंथ के नाम और इसमें बसी कथाओं के अलावा क्या आपने इस ग्रंथ के रोचक तथ्यों को कभी जाना है? इस विशाल ग्रंथ में ना केवल मनुष्य को सही मार्ग दिखाने का उद्देश्य है बल्कि उस युग में हुई ऐसी तमाम बाते हैं जिससे कलयुग का मानव वंचित है.


कहते हैं श्री कृष्ण, जिन्हें भागवत पुराण में सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है, उन्होंने एक दफा दुर्योधन को स्वयं भागवत गीता का पाठ पढ़ाने की कोशिश की थी. लेकिन अहंकारी दुर्योधन ने यह कहकर श्री कृष्ण को रोक दिया कि वे सब जानते हैं. यदि उस समय दुर्योधन श्री कृष्ण के मुख से भागवत गीता के कुछ बोल सुन लेते तो आज महाभारत के युद्ध का इतिहास ही कुछ और होता.


krishna and arjun


यह बात शायद ही कोई जानता है कि जब श्री कृष्ण ने पहली बार अर्जुन को भागवत गीता सुनाई थी तब वहां अर्जुन अकेले नहीं थे बल्कि उनके साथ हनुमान जी, संजय एवं बर्बरीक भी मौजूद थे. हनुमान उस समय अर्जुन के रथ के ऊपर सवार थे. दूसरी ओर संजय को श्री वेद व्यास द्वारा वैद दृष्टि का वरदान प्राप्त था जिस कारण वे कुरुक्षेत्र में चल रही हर हलचल को महल में बैठकर भी देख सकते थे और सुन सकते थे. जबकि बर्बरीक, जो घटोत्कच के पुत्र हैं, वे उस समय श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच चल रही उस बात को दूर पहाड़ी की चोटी से सुन रहे थे.


कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई वह बातचीत ऐतिहासिक नहीं है लेकिन आज का युग उसे ऐतिहासिक दृष्टि से देखता है क्योंकि आज मनुष्य में महाभारत के उस युग को अनुभव करने की क्षमता व दैविक शक्तियां प्राप्त नहीं है. जो ऋषि-मुनि अपने तप से वह शक्तियां प्राप्त कर लेते हैं. वे बंद आंखों से अपने सामने महाभारत युग में हुए एक-एक अध्याय को देख सकते हैं.


brahmand



भागवत गीता की रचनाओं को ना केवल भारत के विभिन्न धर्मों की मान्यता हासिल है बल्कि एक समय में दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक रहे अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी इस महान ग्रंथ की सराहना की है. इसे संक्षेप में वे बताते हैं कि भागवत गीता को उन्होंने अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव में पढ़ा था. यदि वे इसे अपनी जिंदगी की शुरूआती पड़ाव में पढ़ लेते तो ब्रह्मांड और इससे जुड़े तथ्यों को जानना उनके लिए काफी आसान हो जाता. यह देवों द्वारा रचा गया ऐसा ग्रंथ है जिसमें ब्रह्मांड से भूतल तक की सारी जानकारी समाई है.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh