त्यौहार है. पूरे भारत में विभिन्न रूपों में हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाला मकर संक्रान्ति स्नान-दान का पर्व है. आमतौर पर मकर संक्रांति मनाने के पीछे यह मान्यता है कि किसान अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं. इसलिए मकर संक्रांति को फसलों एवं किसानों के त्यौहार से भी जाना जाता है. आइए जानते हैं मकर संक्रांति की मान्यता, महत्व और पुरे भारतवर्ष में इसके विभिन्न रूप-
त्यौहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति आरम्भ होती है. इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं. शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है.
संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.
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भारत में मकरसंक्रांति के विभिन्न रूप
हरियाणा और पंजाब – इस राज्यों में मकर संक्रांति को लोहड़ी के रूप में 13 जनवरी को मानाया जाता है. इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है. बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाती हैं और और मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बांटी जाती है. इस अवसर पर लोग मक्के की रोटी और सरसों का साग का आनन्द उठाते हैं.
तमिलनाडु- इस त्यौहार को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में चार दिनों तक मनाया जाता है. पहला दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की होती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. इस दिन बेटी और दामाद का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है.
उत्तर प्रदेश- इस पर्व को खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है, इसलिए आज के दिन खिचड़ी खाने और खिलाने का प्रचलन है. खिचड़ी व तिलकुट इत्यादि से बनी चिकी/मिठाइयां खाने के साथ-साथ खिचड़ी व तिल का दान भी दिया जाता है.
संक्रांति को खिचड़ी और मकरसंक्रांति के नाम से जाना जाता हैं. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने की मान्यता है.
संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं साथ ही तिल-गूल, नामक, हलवे को बाँटने की प्रथा भी है.
बंगाल- इस अवसर पर गंगा सागर स्नान के लिए प्रत्येक वर्ष विशाल मेला लगता है. इस पर्व पर स्नान के बाद तिल दान करने की प्रथा है. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. लोग बहुत कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं. कहा जाता है कि “सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार.”
राजस्थान- इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को भेंट देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं.
संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है. Next…
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