ओशो की मृत्यु पर मशहूर साहित्यकार खुशवंत सिंह ने कहा था कि, “भारत ने अब तक जितने भी विचारक पैदा किये हैं, वे उनमें सबसे मौलिक, सबसे उर्वर, सबसे स्पष्ट और सर्वाधिक सृजनशील विचारक थे. उनके जैसा कोई व्यक्ति हम सदियों तक न देख पाएंगे.” ओशो को अपने जीवनकाल में काफी यात्रांए की और प्रवचन दिए. उनके विचार लीक से हटकर होते थे जिस कारण उन्हें समाज के अलग-अलग वर्गों द्वारा विरोध झेलना पड़ा. उनकी विलासपूर्ण जीवनशैली भी बेहद विवादास्पद रही लेकिन तमाम विरोध और विवाद के बावजूद उनके विचार तर्कपूर्ण हैं यह ओशो के विरोधी भी मानने से इंकार नहीं करेंगे.
11 दिसंबर को ओशो के अनुयायिओं ने उनका 73वां जन्मदिन मनाया. इस अवसर पर प्रस्तुत है उनका एक प्रवचन जिसमें वे बता रहें हैं कि आखिर लोग ईश्वर की पूजा क्यों करते हैं.
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यदि एक व्यक्ति भीड़ के विपरीत जाता है…जीसस या बुद्ध…भीड़ इस व्यक्ति के साथ अच्छा महसूस नहीं करती, भीड़ उसे नष्ट कर देगी; या, यदि भीड़ बहुत सभ्य है, भीड़ उसकी पूजा शुरू कर देगी. लेकिन दोनों ही ढंग एक जैसे हैं. यदि भीड़ थोड़ी असभ्य है, जंगली है, जीसस को सूली दे देगी. यदि भीड़ भारतीयों जैसी होगी…बहुत सभ्य, सदियों पुरानी सभ्यता, अहिंसक है, प्रेमपूर्ण है, आध्यात्मिक है…वे बुद्ध की पूजा करेंगे.
लेकिन पूजा के द्वारा वे कह रहे हैं कि हम अलग हैं, आप अलग हैं. हम आपका अनुसरण नहीं कर सकते, हम आपके साथ नहीं आ सकते. आप अच्छे हैं, बहुत अच्छे हैं, सच में बहुत अच्छे हैं. लेकिन आप हमारे जैसे नहीं हैं. आप परमात्मा हैं…हम आपकी पूजा करेंगे. लेकिन हमें तकलीफ न दो; ऐसी बातें हमसे मत कहो जो हमारी चूलों को हिला दे, जो हमारी गहरी नींद को खराब कर दे.
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जीसस की हत्या करो या बुद्ध की पूजा करो…दोनों एक ही बातहै. जीसस की हत्या कर दी गई ताकि भीड़ भूल सके कि ऐसा कोई व्यक्ति हुआ भी, क्योंकि यदि यह व्यक्ति सच्चा है…और यह व्यक्ति सच्चाहै. इसका पूरा होना इतना आनंद और आशीष से भरा है कि वह सच्चा है; चूंकि सत्य को देखा नहीं जा सकता, बस खूशबू जो सत्य से आती है, व्यक्ति महसूस कर सकता है.
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साभार: ओशो डॉट कॉम
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