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क्यों कलश में पानी और ऊपर नारियल रखा जाता है, जानिए कलश स्थापना का पौराणिक महत्व

शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र आज से शुरू हो गया है. नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिए अनेक प्रकार के उपवास, संयम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं. इस मौके पर एक तरफ जहां मंदिरों में माता की पूजा-अर्चना और जगरातों का दौर शुरू हो जाता है वहीं दूसरी तरफ मां के भक्त अपने घरों में कलश स्थापित कर पूरी श्रद्धा से नौ दिनों तक उनका आह्वान करते हैं.


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हिन्दू धर्म में कलश-पूजन का अपना एक विशेष महत्व है. धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. विशेष मांगलिक कार्यों के शुभारंभ पर जैसे गृहप्रवेश के समय, व्यापार में नये खातों के आरम्भ के समय, नवरात्र, नववर्ष के समय, दीपावली के पूजन के समय आदि के अवसर पर कलश स्थापना की जाती है.


मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा और विधि


कलश स्थापना का क्या है महत्व ?

कलश एक विशेष आकार का बर्तन होता है जिसका धड़ चौड़ा और थोड़ा गोल और मुंह थोड़ा तंग होता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में महेश तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं. इसलिए पूजन के दौरान कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है.


शास्त्रों में बिना जल के कलश को स्थापित करना अशुभ माना गया है. इसी कारण कलश में पानी, पान के पत्ते, आम्रपत्र, केसर, अक्षत, कुंमकुंम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है. इससे न केवल घर में सुख-समृद्धि आती है बल्कि सकारात्मकता उर्जा भी प्राप्त होती है.



कलश में जल

पवित्रता का प्रतीक कलश में जल, अनाज, इत्यादि रखा जाता है. पवित्र जल इस बात का प्रतीक है कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही स्वच्छ, निर्मल और शीतल बना रहें. हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना एवं सरलता से भरा रहे. इसमें क्रोध, लोभ, मोह-माया, ईष्या और घृणा आदि की कोई जगह नहीं होती.


स्वस्तिष्क चिह्न

कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिष्क चिह्न हमारी 4 अवस्थाओं, जैसे बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है.


नारियल

समान्य तौर पर देखा जाता है कि कलश स्थापना के वक्त कलश के उपर नारियल रखा जाता है. शास्त्रों के अनुसार इससे हमें पूर्णफल की प्राप्ति होती है. कलश के ऊपर धरे नारियल को भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है.


ध्यान रहे नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे. नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है.


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दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प


कलश में डाला जाने वाला दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प इस भावना को दर्शाती है कि हमारी योग्यता में दुर्वा (दूब) के समान जीवनी-शक्ति, कुश जैसी प्रखरता, सुपारी के समान गुणयुक्त स्थिरता, फूल जैसा उल्लास एवं द्रव्य के समान सर्वग्राही गुण समाहित हो जायें. Next…


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