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माँ काली को चढ़ा दिया जाता राम का रक्त अगर हनुमान ने छल न किया होता!

रावण का पुत्र इंद्रजीत(मेघनाद) युद्ध में मारा जा चुका था. इससे रावण को गहरा सदमा लगा. इस अवस्था में उसकी माँ उसे देखने आयी. उसने रावण को उसके अहंकार और उससे उसके पूरे परिवार को होने वाले नुकसान की याद दिलाई. लेकिन रावण कहाँ किसी की बात सुनने वाला था. अपने दुखी पुत्र को सांत्वना देकर जा रही रावण की माँ ने उसे उसके दूसरे बेटे महिरावण की याद दिलाई. कुछ पौराणिक कथाओं में महिरावण को रावण का भाई भी कहा जाता है. महिरावण पाताल लोक का राजा था. उसने रावण को सीता का अपहरण करने से मना किया था. वह तंत्र-मंत्र का बहुत बड़ा जानकार था और माँ काली का भक्त था.


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रावण ने उसे युद्ध में यह कहते हुए अपने साथ कर लिया कि अगर वह अपनी आराध्य माँ काली को राम और लक्ष्मण की बलि देगा तो वह उस पर प्रसन्न हो जाएगी. युद्ध में महिरावण के शामिल होने की ख़बर सुनकर राम की सेना में खलबली मच गई. विभीषण चिंता में पड़ गए क्योंकि महिरावण मायावी शक्तियों का स्वामी था. विभीषण ने इसके बारे में सभी को बताया और हनुमान को राम-लक्ष्मण की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा. हनुमान ने उनकी कुटिया के चारों ओर एक घेरा खींचा ताकि कोई वहाँ प्रवेश न कर सके.


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महिरावण को जब यह पता चला तो उसने कुटिया में घुसने के लिए विभिन्न प्राणियों का रूप धरा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. अंत में उसने विभीषण का रूप धारण किया और हनुमान से मिल कर यह कहा कि वह राम और लक्ष्मण की सुरक्षा को देखना चाहते हैं. हनुमान ने उसे अंदर जाने दिया. फिर महिरावण कुटिया में घुसा. उसने वहाँ राम और लक्ष्मण को सोता देखकर अपनी मायावी शक्तियों से उन्हें अपने वशीभूत कर लिया और पाताल लोक लेकर चला गया. जब तक इसका एहसास हनुमान और विभीषण को होता तब तक काफी देर हो चुकी थी. विभीषण को दोनों भाईयों के जान की चिंता सताने लगी क्योंकि वह जानता था कि महिरावण अपनी मायावी शक्तियों से कुछ भी अनर्थ कर सकने में सक्षम है. फिर विभीषण की सलाहनुसार हनुमान पाताल लोक गये.


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वहाँ पहुँच कर उन्हें पता चला कि महिरावण माँ काली को प्रसन्न कर उनसे अधिक शक्तियाँ प्राप्त करने के लिए राम और लक्ष्मण की बलि चढ़ाने वाला है. कथाओं में कहा गया है कि हनुमान ने तब एक मधुमक्खी का वेश धारण किया और माता काली की शरण में गए. उन्होंने पूछा कि, ‘क्या आप श्री राम का रक्त चाहती हैं?’ इस पर काली ने कहा कि वो महिरावण का रक्त चाहती हैं. अपनी इच्छा प्रकट करने के बाद उन्होंने हनुमान को  दोनों भाईयों की जान बचाने का रास्ता भी सुझाया. हनुमान ने उसी वेश में यह युक्ति राम के कानों में कह दी.


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तब तक बलि का समय नजदीक आ चुका था. राम और लक्ष्मण को बलि के लिए तैयार कर दिया गया था. मुर्हूत आने पर महिरावण ने राम को अपना सिर बलिवेदी पर रखने को कहा. लेकिन राम ने महिरावण से कहा कि, ‘वो क्षत्रिय और एक योद्धा हैं. मैंने किसी के आगे कभी सिर नहीं झुकाया है. इसलिए अगर तुम मुझे ऐसा करके दिखाओगे तो मैं शायद ऐसा कर सकूँ.’ राम की बलि देने की जल्दी में महिरावण इसके पीछे के राज को समझ नहीं पाया और उसने अपना सिर बलि देने के स्थान पर रख दिया. मौके का फायदा उठाते हुए हनुमान अपने वास्तविक रूप में आए और उन्होंने बलि देने के लिए रखे खड्ग को उठा कर महिरावण का सिर धड़ से अलग कर दिया. इस प्रकार हनुमान ने राम और लक्ष्मण को बचा लिया. उसके बाद महिरावण का रक्त माता काली को अर्पण किया गया. Next…….


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