सीता की खोज के लिए राम ने सुग्रीव की सहायता ली थी. सुग्रीव ने सभी वानरों को सीता को खोज लाने का आदेश दे दिया. वानर एक-एक कर भगवान राम के चरण-स्पर्श कर उन्हें खोजने निकल पड़े. राम ईश्वर के अवतार थे लेकिन उन्हें नर-लीला बहुत अच्छी लगती थी. हनुमान के चरण-स्पर्श करते ही उन्हें ज्ञात हो गया कि सीता को खोजने में यही सफल हो सकेंगे.
इसलिए उन्होंने सीता की पहचान के लिए उनके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देने के बहाने चुपके से अपनी अंगूठी उन्हें दे दी. वानर होने के कारण हनुमान ने अपने गले के अग्र भाग में होने वाली थैली में उसे रख लिया. उसी वक्त राम ने हनुमान को धीरे से बताया कि बहुत जल्द ही रावण का भाई विभीषण उनकी शरण में आएगा और मैं उसे स्वर्ण-नगरी लंका प्रदान करूँगा. लेकिन लंका के निर्माण में स्वर्ण के साथ ही कहीं-कहीं ताम्र आदि उपधातुओं का भी प्रयोग हुआ है जिसके कारण वह अशुद्ध है. अब पवित्र हृदय वाले अपने भक्त विभीषण को मैं अशुद्ध लंका कैसे दे सकूँगा? इसलिए तुम यथासमय मौका पाकर लंका को शुद्ध बनाना.
Read: क्या माता सीता को प्रभु राम के प्रति हनुमान की भक्ति पर शक था? जानिए रामायण की इस अनसुनी घटना को
भगवान राम की आज्ञा पाकर हनुमान सीता को खोजकर लंका को शुद्ध करने के उद्देश्य से निकल पड़े. इसी कारण से उन्होंने रावण के प्रिय अशोक वाटिका में तोड़-फोड़ कर रावण को क्रुद्ध कर दिया. फलस्वरूप रावण ने उन्हें बंदी बना उनकी पूँछ में आग लगा दी. हनुमान जी ने सोचा कि सोना तो आग में तप कर ही शुद्ध होता है. अत: राम की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने लंका में आग लगा दी.
Read: सभी ग्रह भयभीत होते हैं हनुमान से…जानिए पवनपुत्र की महिमा से जुड़े कुछ राज
परंतु जलने के बाद भी लंका की चमक फीकी नहीं हुई थी. इसलिए उन्होंने एक चाल चली. रावण ने शनिदेव को अपने सिंहासन के नीच बंदी बनाकर उल्टा लटका रखा था. हनुमान ने रावण के सिंहासन को ही पलट दिया. इसके परिणामस्वरूप शनिदेव का मुख ऊपर को उठ गया. ज्यों ही शनिदेव की नज़र चमकती लंका पर पड़ी वह काली पड़ गई. इस प्रकार हनुमान ने अपने आराध्य की आज्ञा का पालन करते हुए लंका को शुद्ध कर दिया. Next……
Read more:
Read Comments