Menu
blogid : 19157 postid : 806371

जानिए महाभारत में कौन था कर्ण से भी बड़ा दानवीर

हमारे देश के बहुत से धार्मिक स्थल चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्हें में से एक है राजस्थान का प्रसिद्ध “खाटू श्याम मंदिर”. इस मंदिर में भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक की श्याम-रुप में पूजा की जाती है. कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें बाबा का नित नया रुप देखने को मिलता है. कई लोगों को तो इनके आकार में भी बदलाव नज़र आता है. कभी मोटा तो कभी दुबला. कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा तेज भरा कि नजरें टिकाना मुश्किल हो जाता है.


download



मान्यता है कि इस बालक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे. इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे. इसी कारण इन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता था. स्वयं अग्निदेव ने इनसे प्रसन्न होकर ऐसा धनुष प्रदान किया था  जिससे वह तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते थे. महाभारत के युद्ध की शुरुआत में बर्बरीक ने अपनी माता के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की. उन्होनें माता से पूछा- मैं इस युद्ध में  किसका साथ दूँ? माता ने सोचा कौरवों के साथ तो उनकी विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं. इनके सामने पाण्डव अवश्य ही हार जाएँगे. ऐसा सोच वह बर्बरीक से बोली ” जो हार रहा हो तुम उसी का सहारा बनो.’’  बालक बर्बरीक ने माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे.


Read: रामायण के जामवंत और महाभारत के कृष्ण के बीच क्यों हुआ युद्ध


अब वो अपने नीले घोड़े पर सवार हो युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े. अंर्तयामी, सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण युद्ध का अंत जानते थे. इसीलिए उन्होनें सोचा की अगर कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगा तो पाण्डवों की हार तय है. इसलिए श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर  चालाकी से बालक बर्बरीक के सामने प्रकट हो उनका शीश दान में माँग लिया. बालक बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों माँगेगा? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रुप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रुप में दर्शन दिया. बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की. भगवान बोले -तथास्तु. ऐसा सुन बालक बर्बरीक ने अपने आराध्य देवी-देवताओं और माता को नमन किया और कमर से कटार खींचकर एक ही वार में अपने शीश को धड़ से अलग कर श्रीकृष्ण को दान कर दिया. श्रीकृष्ण ने तेजी से उनके शीश को अपने हाथ में उठाया एवं अमृत से सींचकर अमर करते हुए युद्ध-भूमि के समीप ही सबसे उँची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे.



khatu mandir

बर्बरीक मौन हो महाभारत का युद्ध देखते रहे. युद्ध की समाप्ति पर पांडव विजयी हुए. आत्म-प्रशंसा में पांडव विजय का श्रेय अपने ऊपर लेने लगे. आखिरकार निर्णय के लिए सभी श्रीकृष्ण के पास गये. भगवान श्रीकृष्ण बोले- ‘मैं तो स्वयं व्यस्त था. इसीलिए मैं किसी का पराक्रम नहीं देख सका. ऐसा करते हैं, सभी बर्बरीक के पास चलते हैं.’ बर्बरीक के शीश-दान की कहानी अब तक पांडवों को मालूम नहीं थी. वहाँ पहुँच कर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पांडवों के पराक्रम के बारे में जानना चाहा. बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया – “भगवन युद्ध में आपका सुदर्शन नाच रहा था और जगदम्बा लहू का पान कर रही थी. मुझे तो ये लोग कहीं भी नजर नहीं आए.’’ बर्बरीक का उत्तर सुन सभी की नजरें नीचे झुक गई.


Read: महाभारत युद्ध में अपने ही पुत्र के हाथों मारे गए अर्जुन को किसने किया पुनर्जीवित? महाभारत की एक अनसुनी महान प्रेम-कहानी


तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का परिचय कराया  और बर्बरीक पर प्रसन्न होकर इनका नाम श्याम रख दिया. अपनी कलाएँ एवँ अपनी शक्तियाँ प्रदान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण बोले- बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी ना तो कोई हुआ है, और ना ही होगा. माँ को दिये वचन के अनुसार ‘ तुम हारे का सहारा बनोगे. कल्याण की भावना से जो लोग तुम्हारे दरबार में, तुमसे जो भी मांगेंगे उन्हें मिलेगा. तुम्हारे दर पर सभी की इच्छाएँ पूर्ण होगी.’ इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया.


Next….

Read more:

जब रावण को घोड़ों के बीच बांधा गया !!

पृथ्वी का सबसे सत्यवादी इंसान कैसे बना सबसे बड़ा झूठा व्यक्ति? पढ़िए महाभारत की हैरान करने वाली हकीकत

अपने पिता के शरीर का मांस खाने के लिए क्यों मजबूर थे पांडव, जानिए महाभारत की इस अद्भुत घटना को





Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh