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छठ पर्व में सुबह का अर्घ्य क्यों है महत्तवपूर्ण

छठ पर्व का अपना एक विशेष महत्तव है. इस पर्व में न तो घर की सफाई की जाती है और न ही किसी विशेष मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की जाती है. यह पर्व विशेष इसलिए भी है क्योंकि इसमें डूबते सूरज और उगते सूरज को अर्घ्य देने का विधान है.


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क्या है अर्घ्य देने का नियम


अर्घ्य देने से पहले केला, ईख, नारियल और नाना प्रकार के फलों को बाँस की बनी टोकरी में रख कर उसे पीले वस्त्र से ढ़क दिया जाता है. टोकरी को ढ़कने के साथ ही अगरबत्ती और धूप-दीप जला कर टोकरी को दोनों हाथ में उठा भगवान सूर्य की ओर मुड़कर इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है.


ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोस्तुते॥


इस मंत्र का तीन बार उच्चारण कर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है. संध्या-अर्घ्य के बाद व्रती रात्रि जागरण करते हैं. अगली सुबह सूर्योदय से पहले ही लोग अपने-अपने घाटों के लिए निकल पड़ते हैं. कृष्णपक्ष के चंद्रमा के कारण आकाश में कालिमा छाई रहती है.


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व्रती बाँस से बनी टोकरियों को एक अस्थाई मंडप के नीचे सुरक्षित रखते हैं। इस मंडप को गन्ने की टहनियों से बनाया जाता है। एक विशेष साँचा बनाकर इसके कोनों को मिट्टी से बनी हाथी और दीपक की आकृतियों से सँवारा जाता है. फिर व्रती और परिवारजन नदी या जलाशय में कमर भर पानी में खड़े रह भगवान भास्कर के उदित होने का इंतज़ार करते हैं. जैसे ही सूर्य की किरणें उदित होती हैं, साड़ी व धोती पहने स्त्री–पुरुष पानी में उतर जाते हैं। भगवान सूर्य की अर्चना करते वक्त इस मंत्र का जाप किया जाता है.


ऊं अद्य अमुकगोत्रोअमुकनामाहं मम सर्व
पापनक्षयपूर्वकशरीरारोग्यार्थ श्री
सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।


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