कहते हैं भगवान अपने सच्चे भक्तों को दर्शन देने के लिए स्वयं भी प्रकट हो जाते हैं, बस उन्हें पहचानने की शक्ति होनी चाहिए. वो कभी भी, कहीं भी और किसी भी रूप में अपने भक्त के सामने प्रकट हो सकते हैं. कुछ इसी तरह के चमत्कारों का साक्षी रहा है द्वापर युग, यानि की महाभारत का युग, जहां भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण ने युवराज अर्जुन को दर्शन दिए थे. ऐसा ही वाक्या महाबली भीम के साथ भी हुआ, लेकिन उन्हें विष्णु ने नहीं किसी और ने ही दर्शन दिए थे… कौन थे वो?
महाभारत का काला अध्याय
महाभारत का अध्याय तब बेहद संजीदा मोड़ पर खड़ा हो गया था जब पाण्डु पुत्रों ने जुए में कौरवों के हाथों अपना सब कुछ गवा दिया था. यहां तक कि उन्हें इस खेल में अपनी पत्नी की इज्जत की आहुति भी देनी पड़ी थी. छल और कपट की बलि चढ़ने के बाद सभी पाण्डवों को द्रौपदी समेत 12 वर्षों के लिए जंगलों में अज्ञातवास भुगतना पड़ा था.
भोगना पड़ा था अज्ञातवास
मन में हार की निराशा लिये सभी पाण्डवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ जंगल में रहना आरंभ किया. एक दिन द्रौपदी को जंगल में अपनी कुटिया में बैठे मनभावन सुगंध आई. उसने भीम से पता करने को कहा कि ये सुगंध कहां से आ रही है व साथ ही भीम से उन फूलों को ढूंढने का भी आग्रह किया. यह सुन भीम क्रोधित हो उठा और बोला कि मेरे पास तुच्छ फूलों को ढूंढने का समय बिलकुल नहीं है और ना ही मैं उन्हें ढूंढने जाऊंगा.
कुछ समय के पश्चात जब भीम को यह अहसास हुआ कि उसे अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करनी चाहिए तो वो घने जंगलों में उस सुगंध को ढूंढने निकल गया. यह जंगल इतना घना था कि यहां से गुजरने के लिए भी भीम को अपने हथियार की मदद से रास्ता बनाना पड़ा जिससे आसपास के सभी जानवर तक परेशान हो गए.
ये किसने ललकारा भीम के क्रोध को
फूलों को ढूंढते हुए जब भीम एक जगह पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ सुंदर पुष्पों का ढेर लगा है. जैसे ही वो आगे बढ़े, उन्होंने रास्ते में एक बंदर को सोते हुए देखा, जिसे हटाए बिना वो आगे नहीं बढ़ सकते थे. भीम ने उस वृद्ध बंदर से रास्ते से हट जाने को कहा लेकिन शायद उनके आदेश को बंदर ने सुनकर भी अनसुना कर दिया. यह देख भीम को गुस्सा आया और उन्होंने कहा, “मूर्ख बंदर, मेरे रास्ते से हट जाओ. मैं एक शक्तिशाली योद्धा हूं, यदि तुम नहीं हटे तो मैं तुम पर अपनी गदा से वार करुंगा”.
यह सुन बंदर ने धीरे से आंख खोली और कहा, “तुम युवराज भीम हो ना? वही युवराज जो महान योद्धा होते हुए भी दुष्ट कौरवों से अपनी पत्नी की रक्षा ना कर सका. वही युवराज जो खुद को योद्धा कहता है लेकिन संकट के समय में उसके शस्त्र काम ना आए.”
यह सुन भीम और क्रोधित हो गए और उन्होंने बंदर को ललकारते हुए कहा, “मुझे युद्ध के लिए मत उकसाओ. मैं उन लोगों में से हूं जो अपने रास्ते में बाधा बनने वाली प्रत्येक वस्तु को नष्ट कर देता हूं, लेकिन मैं तुम्हे मारना नहीं चाहता क्योंकि तुम एक बूढ़े बंदर हो. इसलिए तुम्हें कह रहा हूं की आसानी से मेरे मार्ग से हट जाओ.”
जब भीम का बल कुछ ना कर सका
भीम को इस दशा में देख वह बंदर मार्ग से हट जाने को राजी तो हो गया लेकिन उसने एक शर्त रखी कि वो हट तो जाएगा पर भीम को उसकी लंबी पूंछ को उठाकर मार्ग से हटाना होगा. कुछ ही क्षण में भीम राजी हो गया और वो पूंछ को हटाने के लिए आगे बढ़ा. भीम की ताकत देखते हुए हुए उसके लिए एक पूंछ को हटाना एक तुच्छ कार्य था लेकिन अचंभा तब हुआ जब लाख कोशिशों के बाद भी भीम पूंछ को एक इंच भी हिला ना सका.
उस क्षण भीम को यह ज्ञात हुआ कि जिस बंदर पर वो इतनी देर से क्रोधित हो रहे थे वो कोई मामूली बंदर नहीं है. यह देख भीम ने बेहद विनम्रता से सवाल पूछा, “आप कौन हैं? आप कोई साधारण जीव तो नहीं हैं”
क्या था उस जीव का रहस्य?
यह सवाल सुनते ही वह मुस्काराए और अचानक से उन्होंने एक इंसान रूपी बंदर का रूप धारण किया. वो कोई और नहीं बल्कि पवनपुत्र ‘हनुमान’ थे. उन्होंने भीम से कहा कि मैं केवल अपने भाई भीम से मिलना चाहता था तथा उसका अहंकार नष्ट करना चाहता था.
हनुमान को देख भीम बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे कौरवों के विरुद्ध युद्ध में पाण्डवों की सहायता करने के लिए विनती की. इस पर हनुमान ने कहा कि वे युद्ध में उनका साथ तो नहीं दे पाएंगे लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा भीम व सभी पाण्डवों के साथ रहेगा. यह सुन भीम ने हनुमान का आशीर्वाद लिया और सुंदर पुष्प लेकर वहां से चले गए.
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